-सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और निर्देशों के बाद चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड का नया डेटा वेबसाइट पर डाला… इसमें 2019 से पहले की भी जानकारी
-एसबीआई सुप्रीम कोर्ट को आज बताएगा- यूनीक अल्फान्यूमेरिक नंबर क्यों नहीं दिए
-इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 2019 और 2023 में राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी मांगी थी
-भाजपा ने सबसे ज्यादा 6,986 करोड़ के बॉन्ड कैश कराए
नई दिल्ली (ईएमएस)। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से 16 मार्च को मिला इलेक्टोरल बॉन्ड का नया डेटा रविवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया। नए डेटा में फाइनेंशियल ईयर 2017-18 के बॉन्ड्स की जानकारी शामिल है। चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, भाजपा ने कुल 6 हजार 986 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड कैश कराए हैं। पार्टी को 2019-20 में सबसे ज्यादा 2 हजार 555 करोड़ रुपए मिले हैं। वहीं, डीएमके को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से 656.5 करोड़ रुपए मिले, जिसमें लॉटरी किंग सैंटियागो मार्टिन के फ्यूचर गेमिंग से 509 करोड़ रुपए भी शामिल हैं।
आयोग ने 14 मार्च को 763 पेज की दो लिस्ट में अप्रैल 2019 के बाद खरीदे या कैश किए गए बॉन्ड की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की थी। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी, जबकि दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 14 मार्च को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग को दी थी। इसमें बॉन्ड के यूनीक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स नहीं थे। कोर्ट ने 15 मार्च को एसबीआई को नोटिस जारी कर 18 मार्च तक जवाब मांगा है। 15 मार्च के आदेश के अनुसार चुनाव आयोग को यह लिस्ट नई जानकारी के साथ 17 मार्च यानी रविवार को शाम 5 बजे तक अपलोड करनी थी। आयोग को यह डेटा सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से डिजिटल रूप में पेन ड्राइव में मिला था।
आज एसबीआई देगा जवाब
15 मार्च की सुनवाई में बेंच ने एसबीआई से मिले डेटा को भी अधूरा बताया था। बेंच ने एसबीआई को निर्देश दिया था कि वे इलेक्टोरल बॉन्ड के यूनीक अल्फान्यूमेरिक नंबर की जानकारी 18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को दें। सुप्रीम कोर्ट को ये डेटा 2019 और 2023 में दिया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 2023 में सितंबर तक राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी मांगी थी। इससे पहले कोर्ट ने 2019 में भी फंड से जुड़ी जानकारी मांगी थी। हालांकि अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि ये डेटा 14 मार्च को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किए गए डॉक्यूमेंट्स से कितना अलग है। आयोग ने 14 मार्च को अपनी वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की थी। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। जबकि दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी। एसबीआई ने इसमें यूनीक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स का खुलासा नहीं किया था। इससे यह पता नहीं चल सका कि किसने किसे कितना चंदा दिया है। इसे लेकर कोर्ट ने 15 मार्च को एसबीआई को नोटिस जारी किया और 18 मार्च तक जवाब मांगा है।
राजनीतिक पार्टियों ने मांगे बॉन्ड्स के यूनीक नंबर्स
आयोग की वेबसाइट पर मौजूद डेटा के मुताबिक कुछ पार्टियों ने एसबीआई से बॉन्ड्स के यूनीक नंबर्स मांगे हैं। तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि उसे नंबर्स चाहिए ताकि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर सके। भारतीय जनता पार्टी ने एसबीआई से ऐसी कोई अपील नहीं की है, बल्कि उसने पूरा डेटा दिया है। बहुजन समाज पार्टी ने कहा कि उसे चुनावी बॉन्ड के जरिए कोई चंदा नहीं मिला है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी कहा कि उसे भी इलेक्टोरल बॉन्ड्स से चंदा नहीं मिला। कांग्रेस ने कहा कि वह एसबीआई द्वारा चुनाव आयोग को दिया गया डेटा जारी करेगी।
विवादों में चुनावी बॉन्ड स्कीम
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोट्र्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।