-सदी के आखिर में तेज गर्मी से एक करोड़ से ज्यादा लोगों की हो सकती है मौत
नई दिल्ली,(ईएमएस)। जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डाटा में प्रकाशित रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2023 में 36.8 अरब मीट्रिक टन का कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हुआ है। यह 2022 से 1.1 फीसदी अधिक है। अमरीका और कोलंबिया के वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर इस तरह से कार्बन बढ़ता रहा तो सदी के अंत तक तेज गर्मी से एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है।
अमरीका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार अगर 2050 तक उत्सर्जन का लेवल यही रहा तो इस सदी के आखिर में गर्मी अपने भीषण लेवल पर पहुंच जाएगी, जिसे दुनिया में करोड़ों लोगों की जान जाने का खतरा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन से गर्मी के लेवल में 0.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी भी खतरनाक होगी। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कार्बन मॉडल से पता चला कि प्रत्येक मिलियन टन कार्बन में बढ़ोतरी से दुनियाभर में 226 ज्यादा हीटवेव की घटनाएं बढ़ जाएंगी । फॉसिल फ्यूल से कार्बन उत्सर्जन के मामले में इस वक्त चीन सबसे ऊपर है। वह कुल उत्सर्जन के 31 फीसदी के लिए जिम्मेदार है और अमरीका 26 फीसदी और रूस 20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। अध्ययन में दावा किया गया है कि इस सदी के अंत तक ज्यादा गर्मी से 1.15 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है। यह गर्मी फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन से पैदा होगी।
यूरोपीय देशों में की तेल कंपनियों से भी भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। इनसे उत्पादित जीवाश्म ईंधन से 2050 तक वायुमंडल में 51 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को बढ़ा देगा जो मानव जीवन के लिए खतरनाक साबित होगा। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति ने चिंता जताते हुए कहा कि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है, हमें 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा। हालांकि उत्सर्जन का लेवल पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ रहा है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में तीव्र और घातक हीटवेव ने लगभग हर महाद्वीप को अपने शिकंजे में कस लिया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों की जान चली गई। वहीं यूरोप में गर्मी के प्रकोप से 2022 में 60 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। दक्षिण एशिया देशों में हीटवेव के कारण सूखे के लेवल में बढ़ोतरी हुई है, जिससे 1 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हीटवेव एक गंभीर खतरा है, और इसके लिए जल्द ही कदम उठाने की जरुरत है। शोधकर्ताओं ने भी कहा कि हमें फॉसिल फ्यूल पर अपनी निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की जरुरत है, साथ ही हमें बच्चे, बुजुर्ग, गरीब और कमजोर समुदायों को हीटवेव से बचाने के लिए कदम उठाने की जरुरत है।