– मंगल कार्यों के लिये खरीदती जाती है चांदी की मछली
हमीरपुर, (हि.स.)। हमीरपुर जिले में धनतेरस से पहले चांदी की मछली का बाजार सजाए जाने की तैयारी स्वर्णकारों ने की है। यहां चांदी की मछली बनाने का कारोबार पिछले डेढ़ सौ से ज्यादा सालों से चल रहा है। चांदी से बनी मछली देखने में बिल्कुल असली दिखती है। यहां की मछली देश ही नहीं पूरे विश्व में भी मशहूर है।
मछली को लोग शुभ मानते हैं, इसलिए इसे घरों के ड्राइंग रूम में सजाकर घर की शोभा बढ़ाते हैं। वीआईपी लोगों में भी इसकी डिमांड होती है। देश के अन्य स्थानों में नाना प्रकार की कला कृतियां विख्यात है लेकिन चांदी की निर्मित मछली आज भारत वर्ष में विख्यात हो गई है। विश्व विख्यात चांदी की मछली का निर्माण उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जनपद के मौदहा तहसील मुख्यालय में उपरौंस मुहाल में हो रहा है। युगल काल में इस कला के प्रति लगाव जगजाहिर था। यहां के प्राचीन भवनों व दरवाजों तथा बर्तनों में खुदी कलाकृतियां इसकी गवाह है। भारतीय परम्परा में आस्था एवं विश्वास के आधार पर खास दिवसों व पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय सबसे पहले मछली देखना पसंद करते थे। इसका उल्लेख भी तमाम पुस्तकों तक में आया है।
यहां से निर्मित चांदी की मछली भारत वर्ष ही नहीं खाड़ी देशों में भी लोकप्रिय है। चांदी की मछली का आविष्कार हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में करीब 154 साल एक स्वर्णकार ने किया था जिसे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने स्वर्णकार को सम्मानित किया था। महारानी विक्टोरिया ने भी चांदी की बेहतरीन मछली बनाने पर स्वर्णकार को तांबे का मैडल देकर सम्मानित किया था। धनतेरस त्योहार को लेकर अब स्वर्णकारों ने बड़ी मात्रा में चांदी की मछली बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। दिन रात दुकानों में मछलियां बनाने का काम चल रहा है।
154 साल पूर्व शुरू हुआ था मछली बनाने का उद्योग
चांदी की मछली का आविष्कार करीब 154 साल पूर्व हमीरपुर के मौदहा कस्बे में जागेश्वर प्रसाद सोनी ने किया था। इतिहासकार अब्दुल फजल यहां आये थे। उसने आइने अरुबरी में लिखा था कि यहां के लोगों में ईश्वरी साधन उपलब्ध है। चांदी की मछली का भी उल्लेख मिलता है। यूपी के सिर्फ मौदहा कस्बे में एक ही स्वर्णकार परिवार के पास मछली बनाने की कला है। यहां की चांदी की मछली भारत और विदेशों में भी लोकप्रिय है। खाड़ी देशों में भी यहां चांदी से बनी मछलियों ने धूम मचाई है। मछली निर्माण में विख्यात होने पर जागेश्वर प्रसाद सोनी को, वर्ष 1981 में पूर्व मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने सम्मानित किया था। चांदी से छोटी बड़ी आकर्षक मछलियों को देख महारानी विक्टोरिया ने भी इस स्वर्णकार को तांबे का मेडल देकर सम्मानित किया था।
मंगल कार्यों के लिए खरीदती जाती है चांदी की मछली
मछली को लोग शुभ मानते हैं इसलिए इसे घरों के ड्राइंग रूम में सजाकर घर की शोभा बढ़ाते हैं। वीआईपी लोगों में भी इसकी डिमांड होती है। देश के अन्य स्थानों में नाना प्रकार की कला कृतियां विख्यात है लेकिन चांदी की निर्मित मछली आज भारत वर्ष में विख्यात हो गई है। विश्व विख्यात चांदी की मछली का निर्माण यूपी के हमीरपुर के मौदहा तहसील मुख्यालय में हो रहा है। युगल काल में इस कला के प्रति लगाव जगजाहिर है। यहां के प्राचीन भवनों व दरवाजों तथा बर्तनों में खुदी कलाकृतियां इसकी गवाह है। भारतीय परम्परा में आस्था, विश्वास के आधार पर खास दिवसों व पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय पहले मछली देखना पसंद करते थे। इसका उल्लेख भी तमाम पुस्तकों तक में है।
तीसरी पीढ़ी के अब नाती पौत्र बनाते हैं चांदी की मछली
जागेश्वर प्रसाद सोनी के निधन के बाद उनके नाती और पौत्र राजेन्द्र सोनी, ओमप्रकाश सोनी एवं रामप्रकाश सोनी मछली बनाते हैं। यूपी एवं अन्य किसी भी राज्य में चांदी की मछली बनाने का काम नहीं होता है। मगर हमीरपुर में यह कलाकृति बड़े उद्योग की शक्ल ले चुका है। राजेन्द्र सोनी ने बताया कि चांदी की मछली इतनी आकर्षक होती है कि हर कोई इसे बड़े लोगों को गिफ्ट देते है। प्रदेश के हर कोई बड़े वीआईपी और आईएएस तक के कई अफसरों को यहां की चांदी की मछलियां देकर सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि महंगाई के इस दौर में अब चांदी की बनी मछलियां घरों की शोभा बढ़ाने के लिए सिर्फ बड़े लोग ही खरीदते हैं। यहां की बनी चांदी की मछली छत्तीसगढ़, एमपी एवं खाड़ी देशों में भी बेची गयी है। बाहर के लोग हाथों हाथ इसे खरीदते हैं।
बनावट की वजह से पानी में तैरती है चांदी की मछली
स्वर्णकार राजेन्द्र सोनी ने बताया कि जैसे पानी के बाहर मछली शरीर को लोच देती है ठीक वैसे इस मछली में भी लोच देखी जा सकती है। पानी में डालने पर ऐसी प्रतीत होता है कि चांदी की मछली जैसे तैर रही हो। मछली का प्रयोग इतर रखने में भी होता है। सबसे पहले मछली की पूंछ बनायी जाती है। फिर पत्ती काट छल्लेदार टुकड़े होते है। जीरा कटान पत्ती को छल्लेदार टुकड़े बनाते हुए कसा जाता है। सिर, मुंह, पंख व अंत में इसमें लाल नग लगाया जाता है। चांदी की मछली बनाने में कई घंटे का समय लगता है। उन्होंने बताया कि चांदी की मछली की डिमाण्ड सिर्फ हमीरपुर जिले में कभी कभार आने वाले वीआईपी लोगों के आने पर होती है। फिर कोई चांदी की मछली के बारे में पूछने नहीं आता है। दीपावली त्योहार पर चांदी की छोटी मछलियों की डिमाण्ड ही बढ़ जाती है।