- अपराध की दुनिया से तौबा, अब जेल में कैद बंदी हुनर से कर रहे प्रायश्चित
- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व दिल्ली के जेल में कैद बंदियों को मिला रोजगार
- हुनर को मिली पहचान, 300 रुपये प्रतिदिन कमाई, एक करोड़ का सलाना टर्नओवर
- वर्ष 2019 में सक्रिय सम्यकदर्शन सहकार संघ, विक्रम कारपेट व जेल प्रशासन के बीच हुआ था करार
मीरजापुर, 07 अगस्त (हि.स.)। जो हाथ खून से सने हों, जिन हाथों ने खूंखार अपराध किया हो, अब वही हाथ कमाल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जेल में कैद बंदियों के हुनर का कोई जवाब नहीं है। इनके हुनर का जलवा अमेरिका-जर्मनी तक है। जेल में ही हस्तशिल्प केंद्र स्थापित कर मानसिक परिवर्तन लाया जा रहा है। इससे अब बंदी आत्मनिर्भर बनने के साथ लखपति बन गए हैं। बंदी लखपति बन गए हैं यह सुनकर आश्चर्य होगा, इसलिए आइए जानते हैं मीरजापुर जेल में कैद बंदियों की आत्मनिर्भरता की कहानी।
मीरजापुर जिला जेल में इस समय बदला-बदला सा नजारा है। बंदी अब अपराध की दुनिया से तौबा कर आत्मनिर्भर की राह पर चल पड़े हैं। यही नहीं, जेल प्रशासन व सामाजिक संस्था के सहयोग से बंदियों ने अमेरिका-जर्मनी तक पहचान बना ली है। सक्रिय सम्यकदर्शन सहकार संघ, जिला कारागार व विक्रम कारपेट के संयुक्त प्रयास से बंदियों में जो सकारात्मक बदलाव दिख रहा है, उसकी नींव वर्ष 2019 में पड़ी थी। उस समय जेल में हस्तशिल्प केंद्र स्थापित करने के लिए सक्रिय सम्यकदर्शन सहकार संघ, जिला कारागार व विक्रम कारपेट के बीच करार हुआ था।
मीरजापुर सहित अन्य जनपद के जेलों के 20-20 बंदियों को जोड़ा गया है। सक्रिय सम्यकदर्शन सहकार संघ व विक्रम कारपेट की ओर से बंदियों को कच्चा माल मुहैया कराई जाती है और डिजाइन भी दिए जाते हैं। वहीं बंदी दरी तैयार कर संस्था को उपलब्ध कराते हैं। बंदियों की हाथों की जादूगरी ऐसी है कि विश्व भर में मीरजापुर के कालीन व कपड़े की मांग है। बंदी जेल में अपने हुनर से 300 रुपये प्रतिदिन कमाते हैं। वहीं उनकी बुनी हुई दरी और कपड़े के कारोबार का टर्नओवर एक करोड़ रुपये सलाना है। मीरजापुर में एक वर्ष के अंदर 20 लाख की दरी अब तक बंदी बना चुके हैं।
न आर्डर का इंतजार, न खपत की दरकार
न पूंजी लगाना, न मेटैरियल जुटाना, न आर्डर का इंतजार और न खपत की दरकार…। उत्तर प्रदेश के पांच, मध्य प्रदेश व दिल्ली के तिहाड़ जेल में हस्तशिल्प केंद्र स्थापित है। इसमें अकेले मीरजापुर जेल के 20 बंदी अपनी हुनर से लखपति बन गए हैं। खास बात यह है कि बंदियों द्वारा बुनी गई दरी खुद विक्रम कारपेट अमेरिका व जर्मनी आदि देशों तक आपूर्ति करती है। इससे जेल में कैद बंदियों को रोजगार मिला है। कालीन दरी बुनाई के लिए मीरजापुर जेल में चार खड्डी लगाई है। इसमें 10 बंदी दरी बनाने का काम करते हैं। लगभग एक सप्ताह में एक दरी बंदी बुनकर तैयार कर देते हैं।
जेल प्रशासन ने नहीं छोड़ी कोई कसर, बंदी बनेंगे स्वावलंबी
बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने में जेल प्रशासन ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। बंदियों को स्वावलंबी बनाने के लिए जेल प्रशासन लगातार प्रयासरत है। इसके लिए सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं, जिससे बंदी जेल से निकलकर अपना रोजगार कर सकें और दोबारा अपराध की तरफ उन्मुख न हों।
सीईओ बोले, विलुप्त हुई बुनकर परंपरा को पुर्नजीवित करने का सार्थक प्रयास
विक्रम कारपेट के सीईओ ऋषभ जैन ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मीरजापुर व भदोही जेल में दरी, वाराणसी जेल में साड़ी, आगरा, मथुरा व अयोध्या जेल में कपड़ा, दिल्ली के तिहाड़ जेल में कपड़ा, मध्य प्रदेश के सागर, जबलपुर व भोपाल जेल में कैद बंदी कपड़ा बुनाई कर रहे हैं। इससे बंदियों में आत्मविश्वास व सकारात्मक सोच बढ़ाकर अपनेपन का अहसास कराया जा रहा है। यह पारंपरिक भारतीय हस्तकला, शिल्प एवं संस्कृति व विलुप्त हुई बुनकर परंपरा को पुर्नजीवित करने का सार्थक प्रयास है।
बंदियों में बढ़ेगा आत्मविश्वास व सकारात्मक सोच, बदलेगी जीवनशैली: जेलर
जेलर अरुण कुमार मिश्र ने बताया कि बंदियों को दरी की बुनाई के लिए जेल प्रशासन की ओर से भूमि दी गई है। अन्य व्यवस्था सक्रिय सम्यकदर्शन सहकार संघ व विक्रम कारपेट की ओर से की गई है। सामूहिक सेवा के मिले-जुले अभियान से जेल में कैद बंदियों के हुनर को पहचान मिली है। इससे बंदियों में आत्मविश्वास व सकारात्मकता बढ़ेगी।