कानपुर, (हि.स.)। किसान जिन क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा हुई है उन क्षेत्रों में दलहनी, तिलहनी एवं श्री अन्न फसलों की बुआई करके अधिक लाभ कमा सकते हैं। यह जानकारी रविवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विज्ञान विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि एवं मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने दी।
उन्होंने बताया कि दलहनी फसलों का बीच यदि उपचारित नहीं है तो संस्तुति के मुताबिक उपचारित फसल के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से अवश्य उपचारित करें।
धान की रोपाई के अनुकूल है मौसम
मौसम वैज्ञानिक ने बताया धान की रोपाई के लिए मौसम अनुकूल है, किसान रोपाई का कार्य अतिशीघ्र पूर्ण करें। धान की ‘डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग’ के लिए दूसरी रोपाई पुनः पहले रोपे गये धान के 03 सप्ताह बाद 10 ग 10 से.मी. की दूरी पर करें। रोपाई वाले खेत में एक फीट ऊॅंची मेढ़ बनाएं, ताकि वर्षा जल संचित कर लाभ लिया जा सके। धान की रोपाई हेतु खेत की तैयारी के समय 25 कि.ग्रा./हे. दर से जिंक सल्फेट डालें।
धान के पौधे रोपने से पूर्व एवं बाद में कैसे करें उपाय
धान की तैयार पौध की रोपाई जहां तक संभव हो 4 ग्रा. ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी की दर से अथवा 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उपचारित करें। कीटनाशकों व कृषि रसायनों का प्रयोग कृषि वैज्ञानिकों या कृषि विभाग के अधिकारियों के परामर्श से ही करें। रोपाई के बाद जो पौधे मर गये हों उनके स्थान पर दूसरे पौधे तुरंत लगा दें, ताकि प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न होने पायें।
उन्होंने बताया कि पलेवा करके ड्रम सीडर से धान की शीघ्र पकने वाली किस्मों की 50 से 55 किग्रा. प्रति हे. बीज की दर से बुवाई करें।धान की 20-25 दिन वाली पौध की रोपाई प्रत्येक वर्ग मीटर में 50-55 हिल तथा 2-3 पौधा प्रति हिल 3-4 सेमी. की गहराई तक करें।