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एक ऐसा शिव मंदिर जहां मुसलमान भी नवाज़ते है मत्था, जानिए पूरा इतिहास !

एक ऐसा भी शिव मंदिर है जहां हिंदू ही नही मुसलमान भी नवाज़ते है मत्था।यह शिव मंदिर मुस्लिमों के भी आराध्यए हैं।उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से 25 किमी दूर एक ऐसा शिवलिंग है, जिस पर कलमा खुदा हुआ है। कहा जाता है कि महमूद गजनवी ने इस शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की थी, मगर वह कामयाब नहीं हो सका था। जिस पर उसने शिवलिंग पर उर्दू में लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह लिखवा दिया ताकि हिंदू इसकी पूजा न कर सकें।लेकिन इसके बाद इस मंदिर के प्रति लोगो की आस्था ओर ज्यादा बढ़ गई। इस शिवलिंग की पूजा करने हजारों हिंदू भक्त जहां दूर-दूर से आते हैं,वही मुसलमान भी इस शिव मंदिर पर आकर सिर झुकाने लगे।यह मंदिर खजनी कस्बेि के निकट सरया तिवारी गांव में है। इसे झारखंडी शिव मंदिर भी कहा जाता है। मान्यंता है कि ये शिवलिंग सैकड़ो साल पुराना है और यहां पर शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था।

लोगों का मानना है कि शिव के इस दरबार में जो भी भक्त आकर श्रद्धा से पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामना भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं।इस शिव मंदिर के पुजारी जेपी पांडे ने बताया कि ये शिवलिंग सिर्फ हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि मुस्लिमों के लिए भी उतना ही पूज्यनीय है।क्योंकि इस पर उर्दू में लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह लिखा हुआ है। उन्होंने बताया कि जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया तो देश के सभी मंदिरों को लूटकर तबाह कर दिया। जब वह इस गांव में आया तो उसकी सेना ने इस शिवलिंग को भी उखाड़ फेंकना चाहा। महमूद गजनवी और उसकी सेना जब इस शिवलिंग को तोड़ नहीं कर पाई, तो उसने शिवलिंग पर कलमा खुदवा दिया, ताकि कोई हिंदू इसकी पूजा न कर सके। पुजारी जेपी पांडे, शहर काजी वलीउल्लाह ने बताया कि इस मंदिर पर काफी कोशिश करने के बाद भी कभी छत नहीं बन पाई है।

ये शिवलि‍ंग आज भी खुले आसमान के नीचे है। मान्येता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित पोखर में नहाने से कुष्ठत रोग से पीड़ित एक राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां पर पांच मंगलवार और पांच रविवार स्नाहन करते हैं और रोग से निजात पाते हैं। महमूद गजनवी के मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गजनवी ने इस मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में उस समय के 10 करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें समय भी 200 साल लगेगा। वर्तमान में यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है। यहां के स्थानीय मुस्लिमों के लिए भी यह शिवलिंग पवित्र है। रमजान में मुस्लिम यहां पर आकर अल्लाह की इबादत करते हैं। इस मंदिर के शिवलिंग को नीलकंठ महादेव भी कहते हैं।

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