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उप्र के जिला अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट की कमी पर यूपी के चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक तलब

प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौकरशाही की अक्षमता को उजागर करने वाली एक कटु टिप्पणी में उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक को राज्य भर के जिला अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट की कमी के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए तलब किया है।

न्यायालय ने एक आपराधिक मामले से सम्बंधित जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद स्थिति को ‘लालफीताशाही दृष्टिकोण का एक उत्कृष्ट उदाहरण’ करार दिया, जिसमें रेडियोलॉजिस्ट की अनुपस्थिति के कारण पीड़िता की चिकित्सा जांच में काफी देरी हुई थी।

यह मामला प्रकाश कुमार गुप्ता द्वारा दायर जमानत याचिक से जुड़ा है, जिस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366 और 376(3) तथा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 5 एल और 6 के तहत आरोप लगाया गया।

याची प्रकाश कुमार गुप्ता पर आरोप है कि उसने 16 मार्च, 2023 को सहतवार, जिला बलिया से 13 वर्षीय नाबालिग लड़की का अपहरण किया और उसके बाद उसका उसका यौन उत्पीड़न किया। कथित घटना के एक दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई थी, और अपराध के समय का कोई विशेष उल्लेख नहीं था। अदालत के निर्देश पर किए गए पीड़िता के अस्थि भंग (आसिफिकेशन) परीक्षण से पता चला कि उसकी उम्र 19 वर्ष थी, जो कि उसके नाबालिग होने के शुरुआती दावे का का खंडन करता है। इस विसंगति ने पाक्सो अधिनियम लगाने के बारे में सवाल खड़े किए, जो केवल नाबालिगों पर लागू होता है।

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्नों की जांच की तथा कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर प्रकाश डाला कि पाक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। हालांकि, इस मामले में, अस्थि भंग परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर पीड़िता की आयु 19 वर्ष पाई गई। न्यायालय ने पाया कि इस अधिनियम के अंतर्गत आने के लिए पीड़िता की आयु गलत बताने से आरोपी को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिसमें गलत कारावास भी शामिल है।

पाक्सो एक्ट नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। लेकिन इस मामले में, मुखबिर द्वारा दी गई झूठी जानकारी के कारण इसका दुरुपयोग किया गया है। अदालत ने कहा ‘यह दुरुपयोग न केवल आवेदक को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि कानूनी प्रणाली और पाक्सो अधिनियम की विश्वसनीयता और अखंडता को भी कमज़ोर करता है।’

न्यायमूर्ति पहल ने इस सिद्धांत को दोहराया कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है। उन्होंने जया माला बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य और मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए। अदालत ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि अदालतें इस सिद्धांत को स्वीकार करें कि ‘जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है।’

हाईकोर्ट ने जिला अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध कराने में असमर्थता के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों की आलोचना की तथा कहा इसके कारण पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए आवश्यक अस्थि भंग परीक्षण में देरी हुई। बलिया के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को अन्य जिलों में परीक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी, जिससे पीड़िता को और अधिक आघात पहुंचा।

न्यायमूर्ति पहल ने कहा, ‘रेडियोलॉजिस्ट की अनुपलब्धता के कारण पीड़िता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया। कोर्ट ने कई मामलों में पाया है कि राज्य भर के विभिन्न जिलों में रेडियोलॉजिस्ट तैनात नहीं हैं।’

अदालत ने याची प्रकाश कुमार गुप्ता की ज़मानत याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ऐसी असाधारण परिस्थितियां स्थापित करने में विफल रहा है, जिसके कारण ज़मानत देने से इनकार किया जा सके। अदालत ने उन्हें व्यक्तिगत मुचलके और दो जमानतदारों पर रिहा करने का निर्देश दिया। साथ ही मुकदमे की कार्यवाही के दौरान उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशेष शर्तें भी रखीं हैं।

रेडियोलॉजिस्टों की कमी को लेकर अदालत ने कई उच्च-स्तरीय अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। जिनमें महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, उत्तर प्रदेश, अपर निदेशक, स्वास्थ्य, आजमगढ़, वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी शामिल हैं। अदालत ने महानिदेशक को एक हलफनामा दायर करने का भी आदेश दिया, जिसमें विभिन्न जिलों में तैनात रेडियोलॉजिस्टों की संख्या, उनकी योग्यता और सरकारी कोटे से उन्हें किस हद तक लाभ मिल रहा है, उसके बारे में विस्तृत जानकारी देने को कहा है। चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक को तलब करने का न्यायालय का आदेश तब आया जब यह पता चला कि रेडियोलॉजिस्ट की अनुपस्थिति के कारण पीड़िता की चिकित्सा जांच में काफी देरी हुई थी। पीड़िता को पहले वाराणसी और फिर आजमगढ़ ले जाया गया, लेकिन प्रशासनिक लालफीताशाही के कारण उसे बार-बार मना कर दिया गया और देरी हुई। इस मामले की अगली सुनवाई 27 सितम्बर को होगी। अदालत ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार अनुपालन को सम्बंधित अधिकारियों को सूचित करने को निर्देश दिया है ताकि वे निर्धारित तिथि पर उपस्थित हों।

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