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अयोध्या के त्रेतायुगीन तीर्थ जहां राम ने भी की पूजा, आप सभी को जाननी चाहिए ये बातें

अयोध्या (हि.स.)। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जन्मभूमि के अलावा अयोध्या धाम में ऐसे तीर्थ भी हैं जिनके बारे में आपको जानना चाहिए। आज हम अयोध्या धाम के ऐसे तीर्थों की चर्चा करेंगे जो त्रेतायुगीन बताए जाते हैं। जहां भगवान श्रीराम भी पूजन किया करते थे। ऐसे ही एक प्राचीन तीर्थ नाग नागेश्वर महादेव हैं। राम की पैड़ी पर स्थित नागेश्वर नाथ मंदिर जिसे भगवान राम के पुत्र कुश द्वारा निर्मित किया गया है। पुराणों के अनुसार महाराज कुश ने भगवान शिव से अयोध्या में विराजमान होने का वर मांगा था।

वेद-पुराणों के अनुसार भगवान राम ने बैकुंठ लोक जाने से पहले अपने पुत्र कुश को कुशावती का राज्य दे दिया। भगवान राम के जाने के बाद अयोध्या सूनी हो गई और मात्र तीर्थ और देवता ही अयोध्या में रह गए। सप्तपुरियों में शीर्ष पर रहने वाली अयोध्या उदास रहने लगी। एक दिन अयोध्यापुरी देवी का रूप धारण कर आधी रात को कुशावती नगरी में उस स्थान पर पहुंची, जहां महाराज कुश अकेले सो रहे थे।

तदायोध्या स्वयं गत्वा तदायोध्या स्वयं गत्वा ह्यर्धरात्रे कुशावतीम् । एकाकी च कुशो यत्र सुष्वाप नृपतिर्गृहे ॥

(श्रीरूद्रयामलोक्त, श्रीअयोध्या माहात्म्य, पांचवां अध्याय, श्लोक 4)

महाराजा कुश अपने शयनकक्ष में अति रूपवान युवती को देखकर काफी हैरान हुए और उनका परिचय पूछा। देवी का रूप धरे अयोध्या पुरी ने महाराज कुश से अपनी व्यथा बताया कि अपने परमलोक जाने के आपके पिता रामचंद्र जी ने मुझ अयोध्यापुरी के सभी निवासियों को अपने साथ ले गए। अयोध्यापुरी ने करुण स्वर में महाराज कुश से कहा कि आपमें सभी शक्तियां रहने पर भी मेरी यह दशा हो गई है और मैं शासक विहीन हो गई हूं। कुश ने मंत्रियों की सलाह से कुशावती नगरी ब्राह्मणों को देकर अयोध्या के लिए प्रस्थान कर दिया। कुश ने अयोध्या पहुंच पूर्व की भांति अयोध्यापुरी को फिर से बसाया।

अयोध्या माहात्म्य के पांचवें अध्याय के 28 वें श्लोक में लिखा है….

स्वर्गद्वारे सदा तिष्ठ नागेश्वर प्रथमागम:।।

कुश ने भगवान भोलेनाथ से कहा कि हे भोलेनाथ, आप भक्तों की रक्षा के लिए सदा स्वर्गद्वार में निवास कीजिये और आपको लोग नागेश्वरनाथ नाम से जाने। उसी समय से भोलेनाथ स्वर्गद्वार में नागेश्वर नाथ के रूप में विराजमान हो गए। इस स्थान पर महराज कुश ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, जिसका जीर्णोद्धार महाराजा विक्रमादित्य ने कराया था।

बड़ी देवकाली: भगवान राम की कुलदेवी

श्रीराम की जन्मभूमि से करीब पांच किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण में यह मंदिर स्थित है। बड़ी देवकाली रघुकुल की कुलदेवी के रुप में जानी जाती हैं। अत्यंत भव्य और प्राचीन यह मंदिर त्रेतायुगीन है। श्रीराम का जन्म महाप्रतापी सम्राट इक्ष्वाकु कुल में हुआ था। बताते हैं कि महाराज इक्ष्वाकु ने ही बड़ी देवकाली मंदिर की स्थापना कराई थी। तभी से बड़ी देवकाली मंदिर में पहले श्रीराम के पूर्वज और फिर उनके बाद की पीढिय़ां पूजा अर्चना करते चले आए। इस मंदिर के पुजारी सुनील पाठक हैं, जो बताते हैं कि राम जन्म के बाद माता कौशल्या ने उन्हें पहली बार यहीं माता का दर्शन कराया था। आज भी अयोध्या वासी अपने नवजात बच्चे को इस मंदिर का दर्शन कराते हैं।

छोटी देवकाली माता सीता की कुल देवी

इसी प्रकार अयोध्या में छोटी देवकाली का मंदिर भी है। जिसे माता सीता की कुल देवी माना जाता है। मान्यता है कि माता सीता के विवाह के बाद जनक पुर से उनकी कुलदेवी भी अयोध्या चली आई थी। अयोध्या में छोटी देवकाली मंदिर में नगर देवी सर्वमंगला पार्वती माता गौरी के रूप में विराजमान हैं। देवकाली मंदिर में माता सीता की कुल देवी के रूप में इस शक्ति पीठ में विशेष आस्था और श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। आज यह रामायण कालीन मंदिर अपनी भव्यता और श्रेष्ठता के चलते भारत का प्रमुख देवस्थल बना हुआ है। हूणों और मुगलों के आक्रमण से यह मंदिर दो बार ध्वस्त हुआ। पहली बार इसका पुनर्निर्माण महाराज पुष्यमित्र ने और दूसरी बार बिन्दु सम्प्रदाय के महंत ने इस भव्य मंदिर के स्थान पर एक छोटी सी कोठरी का निर्माण कराया। रूद्रयामल और स्कन्दपुराण में भी श्री देवकाली माता और उनके मंदिर का उल्लेख मिलता है।

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