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अनुकम्पा नियुक्ति अस्थायी नहीं जो सेवानिवृत्त से पहले सेवा समाप्त की जाए : हाईकोर्ट

–हाईकोर्ट ने 23 साल पहले सेवा बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए मृत कर्मचारी की पत्नी के दावे पर विचार करने का दिया आदेश

प्रयागराज,  (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति अस्थायी प्रकृति की नहीं है, जो कर्मचारी की सेवा को तीन साल बाद समाप्त कर दिया जाए। अनुकम्पा नियुक्ति का नियम एक वैधानिक नियम है। इसमें अस्थायी नियुक्ति का प्रावधान नहीं है।

यह आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने मनोज कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के पिता मुन्ना लाल क्लर्क थे। उनकी मृत्यु नौ फरवरी 1990 में हो गई थी। अनुकम्पा नियुक्ति के तहत याची को 17 सितम्बर 1997 को नियुक्ति पत्र जारी किया गया। तीन साल की सेवा बाद याची को अस्थायी सरकारी सेवक (सेवा समाप्ति) नियम-1975 के तहत 22 जनवरी 2000 को नोटिस जारी कर सेवा से हटा दिया गया। समाप्ति आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

याची की ओर से दलील दी गई कि याची की नियुक्ति मूल प्रकृति की थी। उसकी नियुक्ति अनुकम्पा के आधार पर दी गई थी। इसलिए, उसे अस्थायी रोजगार नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत प्रतिवादी की ओर से जवाब दिया गया कि नियुक्ति के लिए पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि नियुक्ति की प्रकृति अस्थायी थी, जिसे बिना पूर्व सूचना के समाप्त की जा सकती है। यह भी तर्क दिया गया कि क्योंकि याची का भी निधन हो गया है। इसलिए याचिका निरर्थक हो गई है।

मामले में याची को कारण बताओ नोटिस देने के बाद सेवा समाप्ति का आदेश पारित किया गया था। तर्क दिया गया कि जब 2001 में याचिका दाखिल हुई तो कोर्ट ने सेवा समाप्ति के आदेश पर रोक लगा दी थी और याची के पिता ने 2020 में अपनी मृत्यु तक काम करना जारी रखा था। हालांकि, 2018 में अदम पैरवी में याचिका खारिज कर दी गई थी। मृतक ने काम करना जारी रखा था। जब मृतक की पत्नी मंजू लता ने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन किया तो यह कहा गया कि याचिका लम्बित होने के कारण उसके आवेदन पर निर्णय नहीं लिया जा सका।

कोर्ट ने कहा कि मृतक की नियुक्ति पत्र में अस्थायी का उल्लेख किया गया था। बावजूद इसके उसकी नियुक्ति अस्थायी नहीं होगी। क्योंकि, गवर्नमेंट सर्वेंट डाइंग इन हार्नेस रूल्स-1974 के नियमों के तहत अनुकम्पा नियुक्ति को अस्थायी प्रकृति मानने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

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