कहा, अधिकार क्षेत्र से बाहर काम करने वाले सदस्यों या अध्यक्षों का पद से हटाया जाना सही
प्रयागराज, (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और यूपी अल्पसंख्यक आयोग द्वारा उठे विवादों को लेकर उसके दिए गए फैसले पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति मुख्य सचिव यूपी सहित अन्य अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया और टिप्पणी की है कि आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि अगर सदस्य या अध्यक्ष ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने डिवाइन फेथ फेलोशिप चर्च व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में अल्पसंख्यक आयोग द्वारा विवादों पर निर्णय लेने और निर्णय करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रथाओं की निंदा की है। कहा है कि आयोग अदालतों जैसा रवैया अपना रहीं हैं। वे बिना किसी तुक या कारण के अधिकारियों को तलब कर रहा है।
अधिकारियों पर किसी भी फैसले को पारित करने के लिए दबाव डाल रहा है और आदेश दे रहा है। कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग या उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों या अध्यक्षों से अपेक्षा की है कि वे अदालत के रूप में कार्य न करें या निर्णय न लें, जिसके लिए उन्हें अधिनियम के तहत ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर आयोग के सदस्य अधिकार क्षेत्र से परे कार्य कर रहा है तो यह पद का दुरुपयोग होगा। ऐसे सदस्यों या अध्यक्षों का पद पर बने रहना सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक होगा। ऐसे सदस्य या अध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है। आयोग का काम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित रखना है।
मामले में याची जो एक गैर सरकारी संगठन है, वह ईसाई समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने का दावा करता है। उसकी ओर से दावा किया गया कि चर्च क्षेत्र के आसपास उनकी 17 दुकानें हैं, जो चर्च की संपत्ति है। एक दुकान पर किसी ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया। मामले की शिकायत यूपी अल्पसंख्यक आयोग से की गई। आयोग ने नायब तहसीलदार को तलब किया। सुनवाई के आधार पर यूपी अल्पसंख्यक आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि कमल नामक व्यक्ति ने अमित को पट्टे पर दी गई दुकान पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था। आयोग ने निर्देश दिया कि किराएदार और कमल दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
अल्पसंख्यक आयोग के आदेश पर यूपी सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं की गई तो याची ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष आवेदन दाखिल किया। राष्ट्रीय अल्पसंख्य आयोग ने याचियों और एसडीएम को सुनने के बाद जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि याचियों को दुकान पर कब्जा दिलाने में मदद करें। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के आदेश का पालन न होने पर याचियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
यूपी सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना एक खास उद्देश्य के लिए की गई है लेकिन आयोग अधिकारियों पर दबाव डालकर और उन्हें बुलाकर अपने अधिकार क्षेत्र से परे काम कर रहा है। हाईकोर्ट के सामने यह मुद्दा था कि क्या 1992 अधिनियम के तहत स्थापित अल्पसंख्यक आयोग एक न्यायालय है या नहीं या पार्टियों के बीच मुद्दों का फैसला कर सकता है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए आयोग का गठन किया गया है। वह किसी मुकदमे की सुनवाई कर सकती है लेकिन संपत्ति विवाद समाधान के लिए बेदखली का निर्देश देने की शक्ति नहीं दे सकती है।