2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी सभी दलों ने शुरू कर दी है। कांग्रेस जहां भारत जोड़ो यात्रा कर रही है, वहीं क्षेत्रीय दल विपक्षी एकता की कोशिश करते दिख रहे हैं। बीजेपी (BJP) ने भी अपनी कमजोर कड़ियों पर काम करना शुरू किया है। एकतरफ भाजपा नेतृत्व के सामने साल 2019 की सफलता को दोहराने की चुनौती है, तो दूसरी तरफ उन सीटों पर भी कमल खिलाने का चैलेंज है, जिन पर पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली थी. खासतौर पर भाजपा उन 11 प्रदेशों में अपनी गुंजाइश तलाश रही है, जहां पिछली बार उनका खाता भी नहीं खुला था.
साथ ही उन 209 सीटों पर भी नजर है, जहां दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस इस बार जीत की जुगत तलाश रही है. इसी कारण चार दिन पहले दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) की मौजूदगी में शीर्ष नेताओं की रिव्यू मीटिंग आयोजित कर रणनीति तैयार की गई है.
11 राज्यों में हैं 91 लोकसभा सीट
भाजपा लोकसभा चुनाव के दौरान जिन 11 राज्यों में खाता भी नहीं खोल पाई थीं, उनमें कुल 91 लोकसभा सीट आती हैं. इनमें दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश तो शामिल हैं ही, साथ ही उत्तर-पूर्व से भी सिक्किम, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम भी हैं. इसके अलावा दादरा व नागर हवेली, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह जैसे केंद्र शासित प्रदेश भी इस लिस्ट में शामिल हैं. तमिलनाडु में 39, आंध्र में 25, केरल में 20 और मेघालय में 2 लोकसभा सीट हैं, जबकि बाकी सभी राज्यों में 1-1 लोकसभा सीट है.
मौके में चौका लगाने की फिराक में भाजपा
भाजपा इन सभी राज्यों में अपने लिए ‘संभावना में अवसर’ तलाश रही है. जहां भाजपा की निगाह तमिलनाडु में जयललिता के बाद आपसी झगड़ों में उलझी अन्नाद्रमुक की जगह लेने पर टिकी है, वहीं आंध्र प्रदेश में भगवा दल का ध्यान TDP के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के बाद खाली हुई जगह पर टिका है. इसी कारण आंध्र प्रदेश में पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई, जो दक्षिण भारत में भाजपा का 18 साल बाद होने वाला राष्ट्रीय आयोजन था. इसके अलावा भी भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की सक्रियता भी इन दिनों हैदराबाद में दिखाई दी है.
केरल में पहले से ही भाजपा ने अपने पैर जमा लिए हैं. हालांकि इसका असर विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा नहीं दिखा है, लेकिन भाजपा अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को पछाड़कर दूसरे नंबर की पार्टी बनने में सफल रही है. अब लोकसभा चुनाव में भाजपा की निगाह अपने बढ़े हुए वोट परसंटेज को सीटों की संख्या में बदलने पर टिकी है.
सीट जीतने की रणनीति
भाजपा की रणनीति इन राज्यों में वोट परसंटेज बढ़ाने से ज्यादा ध्यान सीट का खाता खोलकर आगे बढ़ने की है. इसके लिए सीटवार गणित पर फोकस किया जा रहा है. इस गणित में भाजपा की निगाह सबसे पहले उन 72 सीटों पर है, जिन पर 2019 लोकसभा चुनाव में उनका उम्मीदवार 2 नंबर पर रहा था. इनके बाद उन सीटों पर ध्यान फोकस किया जा रहा है, जहां पार्टी तीसरे नंबर पर थी. इसके बाद उन सीटों पर नजर है, जिन पर पार्टी चौथे नंबर पर रही थी. भाजपा की दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर वाली सीटों की संख्या 144 है.
चार राज्यों में सबसे बड़ी चिंता
भाजपा के लिए चार राज्य सबसे बड़ी चिंता है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार राह बेहद मुश्किल हो गई है. ये चार राज्य पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र और बिहार हैं. इन चार राज्यों में भाजपा ने 60 सीट जीती थी, लेकिन पंजाब में 2 लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में अकाली दल के बिना निष्प्रभावी रही है तो 17 सीट भगवा झंडे पर देने वाले बिहार में भी नीतिश कुमार और तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) के जदयू (JDU) व राजद (RJD) के साथ कांग्रेस समेत 7 दलों के महागठबंधन के सामने पार्टी की स्थिति कमजोर है.
महाराष्ट्र में भाजपा की 23 सीट थी, लेकिन इस बार उनके सामने उद्धव ठाकरे (Udhav Thakare) की शिवसेना, कांग्रेस और NCP के महाआघाड़ी के मिले-जुले वोटबैंक से जूझने की चुनौती है. शिवसेना को तोड़ने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) पार्टी के वोटबैंक में कितनी सेंध लगा पाएंगे, यह अभी निश्चित नहीं है. इसी तरह पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी नेताओं की आवाजाही के दौर से जूझ रही है.