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राजनीति…गठबंधन का खेल हमेशा होता रहा फेल : दो बार मिलकर बिछड़ चुकी है सपा-बसपा

-1996 में हांथ और हाथी का रह चुका है साथ
-कांग्रेस और सपा का भी रह चुका है साथ

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां काफी तेजी से गति पकड़ रही है। मिशन2022 को फतेह करने के लिए कोई भी दल कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सारे दल चुनाव वैतरणी पार लगाने के लिए छुटभैय्ये दलों को लेकर बड़े-बड़े गठबंधन बनाने में लगे है। मुख्यविपक्षी दल समाजवादी पार्टी हो या सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी दोनों ही ऐसे दलों को साथ लेने में परहेज नहीं कर रहे है। हालांकि यह बात दीगर है कि पिछले कई दशकों के राजनीतिक परिद़ृश्य पर नज़र डाले तो पता चलता है कि यहां कभी गठबंधन की राजनीति परवान नहीं चढ़ पाई। कोई गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा करना तो दूर कुछेक सरकार छह माह का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। हालांकि गठबंधन की राजनीति से कभी भी किसी ने कोई परहेज नहीं किया। कोई किसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और सरकार किसी के साथ बनाई। यह खेल लोकसभा से लेकर विधानसभा तक के चुनावों में भी चला। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं कि दो साल पहले हुए लोकसभा चुनाव हुए सपा-बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। सपा-बसपा की यह दोस्ती दूसरी बार थी। इससे पहले 2017 में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हुआ था लेकिन परिणाम अनुकूल नहीं रहे। सपा-बसपाका गठबंधन 1993 में भी हुआ था।

लेकिन दोनों गठबंधन जितनी तेजी से बने उतनी ही तेजी से टूटे भी। किसी भी दल का गठबंधन टिकाऊ नहीं साबित हुआ। प्रदेश में गठबंधन की राजनीति पर नज़र डाले तो पता चलता है कि यहां के लोगों को इस तरह की राजनीति कभी नहीं भायी। यहां के गठबंधन का तो इतिहास यही बताता है कि जो गठबंधन जितनी जोर-शोर से बने उतनी ही जल्दी से तीन तेरह भी हो गए। 2022 को लेकर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी भाजपा से दो चार होने के लिए छुटभैय्ये दलों को लेकर अपना कुनबा तैयार करने में लगी है। उनके साथ इस समय रालोद,सुभासपा,सहित कई अन्य छोटे दल इक_ïा हो रहे है। फिलवक्त बसपा और कांग्रेस ने किसी भी दल के साथ गठबंधन करने की संभवनाओं को खारिज कर दिया है। यूपी की राजनीति पर गौर करे तो यहां गठबंधन की राजनीति के कई प्रयोग किए गए,लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। यहां तक एक-दूसरे के धुर विरोधी कम्युनिस्ट और भारतीय जनसंघ भी एक ही सरकार में साथ-साथ रह चुके हैं। पर इनमें कोई भी पांच साल तक सरकार नहीं चला सका।

यूपी में गठबंधन की राजनीति का इतिहास बताता है कि चौ. चरण सिंह ने पहली बार वर्ष 1967 में विभिन्न विचार धारा वाले दलों को साथ लेकर सरकार बनाने का प्रयोग किया था। तब चौ. चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल बनाया और सरकार बनाई। उस सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ भी शामिल हुआ। पर यह सरकार एक साल का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। चरण सिंह के बाद 1970 में कांग्रेस से अलग हुए विधायकों ने त्रिभुवन नारायण सिंह के नेतृत्व में साझा सरकार बनाई। इसमें कई अन्य दलों के साथ जनसंघ भी शामिल हुआ पर यह सरकार छह महीने भी नहीं चल पाई। वर्ष 1977 मेंं जनता पार्टी के नाम से फि र एक गठबंधन तैयार किया। फि र बाद में जनसंघ तक की आम सहमति से जनता पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा गया। प्रदेश में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनी और उसके मुखिया रामनरेश यादव बने। विपरीत विचारधारा के नेताओं की इंदिरा की नीतियों के विरुद्ध बनी एकजुटता जल्द ही तीन तेरह हो गई। वर्ष 1989 में देश व प्रदेश में फि र गठबंधन राजनीति का प्रयोग किया गया। कांग्रेस के विरोधी दलों ने देश से लेकर प्रदेश तक जनमोर्चा फि र जनता दल के नाम से गठबंधन बनाया। यूपी में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में 5 दिसंबर 1989 को जनता दल की सरकार बनी। पर यह भी पांच साल नहीं चली। राम मंदिर आंदोलन के चलते टकराव से पहले भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह ने कांग्रेस की मदद से अपनी सरकार बचाई लेकिन यह दोस्ती भी ज्यादा नहीं चली। इसके बाद सपा-बसपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुनाव लड़ा और सरकार बना ली। मुलायम सिंह यादव फि र सीएम बन गये पर गेस्ट हाऊस कांड के चलते बसपा के सपा से नाता टूट गया। मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं लेकिन उनका कार्यकाल मात्र साढ़े चार माह ही रहा।

वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनावों में किसी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला। ऐसे में भाजपा व बसपा के बीच हुए समझौते के तहत छह-छह महीने के मुख्यमंत्री पर सहमति बनी। पहली बार देश के किसी राज्य में इस तरह का प्रयोग हुआ। मायावती मार्च १९९७ में दूसरी बार सीएम बनीं। सरकार में भाजपा भी शामिल हुई। छह महीने बाद जब कल्याण सीएम बने तो मायावती ने एक माह बाद ही समर्थन वापस ले लिया। वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। तब भाजपा के सहयोग से मायावती तीसरी बार सीएम बनी। लगभग डेढ़ साल बीतते-बीतते भाजपा व बसपा के बीच मतभेद इतने बढ़ गए। मायावती ने तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री से सरकार बर्खास्तगी की सिफ ारिश कर दी। भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। कई नाटकीय घटनाक्रम हुए और भाजपा के समर्थकों और बसपा के लोगों को तोड़कर मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। यूपी की राजनीति में हुए ऐसे घटनाक्रमों से सूबे की जनता ऊब गई। जिसके चलते वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों ने प्रदेश की जनता ने बसपा को पूर्ण बहुमत देकर गठबंधन की राजनीति को समर्थन न देने का संदेश दिया। इस साल हुए चुनाव में बसपा को २०६ सीटे मिली थी।
इसके बाद वर्ष 2012 और वर्ष 2017 में भी जनता ने यही संदेश दिया। पहले अखिलेश और फिर योगी आदित्यनाथ की पूर्णबहुमत की सरकार बनी।

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