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मैनपुरी उपचुनाव: डिंपल संभालेंगी मुलायम की विरासत? अपर्णा उतरीं तो होगा दिलचस्‍प मुकाबला

Mainpuri By Election: धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित कर दिया है। आगामी 5 दिसंबर को होने वाले उपचुनाव में सपा की तरफ से मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए डिंपल यादव का नाम फाइनल हो गया है। मैनपुरी को सपा का गढ़ माना जाता है। लेकिन लगातार चुनाव में हार का सामना कर रही सपा की राहें इतनी आसान भी नहीं हैं।

लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा डिंपल के खिलाफ छोटी बहू अपर्णा को रण में उतार सकती है। बता दें कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। सपा के इस अभेद्य किले को भेदने के लिए सभी राजनीतिक दल प्रत्याशी को लेकर मंथन कर रहे हैं। हालांकि इस सीट पर मुकाबला सपा और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है।

2019 के बाद सक्रिय राजनीति में डिंपल

गौरतलब है कि अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल तीन साल बाद सियासी दंगल में वापसी कर रही हैं। 2019 में उन्होने कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा के सुब्रत पाठक से वह चुनाव हार गई थीं। 44 वर्षीय डिंपल 5वीं बार चुनाव मैदान में उतर रही हैं। सपा मैनपुरी से उम्मीदवार के तौर पर डिंपल यादव के अलावा तेज प्रताप यादव और धर्मेंद्र यादव के नाम पर भी विचार कर रही थी, पर आज गुरूवार को डिंपल के नाम को फाइनली सहमति मिल गई।

दिलचस्प होगी इस बार लड़ाई

जानकारों का मानना है कि इस बार अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी की लड़ाई आसान नहीं रहेगी। चाचा शिवपाल भी मुश्किल बढ़ा सकते हैं। चर्चा जोर है कि भाजपा मुलायम परिवार की दूसरी बहू अपर्णा को यहां से चुनाव लड़वा सकती है। ऐसा हुआ तो मुकाबला दिलचस्प रहेगा। पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में अपर्णा ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। दूसरी तरफ भाजपा उत्साह में भी है क्योंकि उसने सपा के गढ़ रहे आजमगढ़ और रामपुर लेकसभा सीट भी अपने नाम कर ली है।

मैनपुरी लोकसभा सीट का इतिहास

बता दें कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर भाजपा एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है। यहां अब तक कुल 16 बार लोकसभा चुनाव और दो बार उप-चुनाव हुए हैं। जिसमें आठ बार समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की है। एक-एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बीएलडी, जनता पार्टी (सेक्युलर), जनता दल और जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनकर लोकसभा पहुँचे हैं। और तो मायावती की पार्टी बसपा भी यहां खाता नहीं खोल पाई है। इसलिए बीजेपी की कोशिश रहेगी इतिहास बदला जाए।

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