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कभी भी ढह सकता है भारतीय शेयर बाजार, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह !

मुंबई (ईएमएस)। भारतीय शेयर बाजार इन दिनों भारी घबराहट में है। विदेशी निवेशक 40000 करोड रुपए से ज्यादा की रकम शेयर बाजार से निकलकर,मुनाफा वसूली कर चुके हैं। भारतीय वित्तीय संस्थाएं निवेश करके इस गड्ढे को भरने का प्रयास कर रही हैं। बाजार को बचाए रखने के लिए अभी तक भारतीय निवेशकों ने 50186 करोड रुपए शेयर बाजार में निवेश किए हैं। इसके बाद भी शेयर बाजार में गिरावट का दौर जारी है। 5 दिनों से लगातार गिरावट बनी रही। शुक्रवार को मामूली अंकों के साथ शेयर बाजार में बढ़त देखने को मिली।

4 जून को चुनाव परिणाम आने हैं। आखिरी चरण की वोटिंग 1 जून को संपन्न हो गई है। इस बार आशंका व्यक्त की जा रही है। शायद मोदी सरकार वापस ना हो। यदि वापसी हुई भी, तो उसे 300 से कम सीटों का बहुमत मिलेगा। जिसके कारण विदेशी निवेशक मुनाफा वसूली करके भारतीय शेयर बाजार से बाहर निकल रहे हैं।

सोमवार से लेकर गुरुवार तक लगातार शेयर बाजार में गिरावट बनी रही। शेयर बाजार में 76000 अंक की ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद गोता लगाना शुरू कर दिया। गुरुवार को 73885 के अंक पर शेयर बाजार में कारोबार बंद हुआ। 5 दिनों में 2000 अंकों से ज्यादा की गिरावट हुई। इस गिरावट में निवेशकों को 10 लाख करोड रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।

4 जून को भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, तो भारतीय शेयर बाजार में 10000 से अधिक अंकों की गिरावट की आशंका बन गई है। एनडीए गठबंधन को यदि 300 के आसपास सीटें मिलेगी। तभी शेयर बाजार स्थिर रह सकता है। इंडिया गठबंधन को बहुमत मिला, तो लगभग 15 फ़ीसदी की गिरावट बाजार में जल्द ही देखने को मिल सकती है।

फुग्गे की तरह फूला भारतीय शेयर बाजार
दुनिया भर के सभी शेयर बाजारों में भारतीय शेयर बाजार लगातार नई-नई ऊंचाइयों को छूता रहा। जिसके कारण यह कहा जा रहा है। भारतीय शेयर बाजार में सट्टेबाजी और तेजी का वातावरण बनाए रखने के लिए निवेशक लगातार बाजार को लगातार तेजी की ओर ले जा रहे हैं। इसमें वर्तमान मोदी सरकार भी शेयर बाजार के जरिए अपने आर्थिक तंत्र को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है। जिसके कारण शेयर बाजार में लगातार तेजी देखने को मिल रही थी। इंडिया गठबंधन की सरकार केंद्र में बनी,तो शेयर बाजार में तेजी बनाए रखना संभव नहीं होगी। उल्टे मार्केट में तेजी के साथ करेक्शन आएगा। बाजार में भारी गिरावट आना तय है। इसका असर भारत की वित्तीय संस्थानों में भी पडना तय है।

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