शुभ कार्यों एवं धार्मिक कार्यों में नारियल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बिना नारियल के पूजा अधूरी है। यह भी कहा गया है कि नारियल से शारीरिक दुर्बलता भी दूर होती है। नारियल को श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का फल है यही कारण है कि इसे श्रीफल के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु जब पृथ्वी में प्रकट हुए तब स्वर्ग से वे अपने साथ तीन विशेष चीजें भी लाए। जिनमें पहली थीं माता लक्ष्मी, दूसरी वे अपने साथ कामधेनु गाय लाए थे तथा तीसरी व आखरी चीज थी नारियल का वृक्ष। मान्यता के अनुसार नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है।
परंतु एक खास तथ्य है कि स्त्रियों द्वारा नारियल को नहीं फोड़ा जा सकता क्योंकि श्रीफल अर्थात नारियल एक बीज फल है जो उत्पादन या प्रजनन का कारक है। श्रीफल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियां बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती है यही कारण है कि स्त्रियों को बीज रूपी नारियल को नहीं फोड़ना चाहिए। ऐसा करना शास्त्रों में अशुभ माना गया है। शनि की शांति हेतु नारियल के जल से शिवलिंग पर रुद्रभिषेक करने का शास्त्रीय विधान भी है।
शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा में मंदिर में नारियल रखें तथा रात्रि के समय इस नारियल को अपने तिजोरी में रख दें। अगली सुबह इस नारियल को निकालकर श्री गणेश के मंदिर में अर्पित कर दें। आप की धन से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान होगा तथा माता लक्ष्मी की कृपा आप पर होगी। इसको घर में रखने से महालक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य को कभी भी धन से संबंधित समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। आपको जानकार काफी हैरानी होगी कि श्रीफल कैलोरी से भरपूर होता है, तथा इसकी तासीर ठंडी होती है। श्रीफल में अनेक पोषक तत्व विद्यमान होते हैं।
भारतीय वैदिक परंपरा अनुसार श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक माना जाता है। भारतीय सामाजिक रीति-रिवाजों में भी शुभ शगुन के तौर पर श्रीफल भेंट करने की परंपरा युगों से चली आ रही है। विवाह की सुनिश्चित करने हेतु अर्थात तिलक के समय श्रीफल भेंट किया जाता है। बिदाई के समय नारियल व धनराशि भेंट की जाती है। यहां तक की अंतिम संस्कार के समय भी चिता के साथ नारियल जलाए जाते हैं। वैदिक अनुष्ठानों में कर्मकांड में सूखे नारियल को वेदी में होम किया जाता है।