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विधानसभा चुनाव : विरासत और दांवपेंच की सियासत में जंग

सुलतानपुर। कोई उत्तेजना नहीं कोई अपशब्द नहीं। कोई अभद्र आरोप-प्रत्यारोप नहीं । शायद इन्हीं खूबियों-खासियतों के लिए पूरे देश में अपनी खास एवं अलग पहचान रखता है भगवान राम के द्वितीय पुत्र कुश द्वारा बसाया गया त्रेता युगीन अवध का जिला सुलतानपुर (कुशभवनपुर)। राजनीति, खासकर चुनाव की बात करें तो उसमें भी सुलतानपुर सबसे जुदा है, सबसे अलग है। यहां चुनाव जीतने के लिए यहां के लोगों का दिल जीतना पहली और जरूरी शर्त है।

महराज कुश की नगरी सुलतानपुर (कुशभवनपुर) में खेतों की फसल के साथ चुनावी फसल भी तैयार है। किसान खेतों तथा अपने घर गृहस्थी के कामों में लगा है और सियासती लोगों के साथ प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। अभी भले ही सभी प्रमुख राजनीति दलों के प्रत्याशियों के नामों की तस्वीर साफ नहीं हुई हो, लेकिन यहां के लोगों ने सभी पांचों विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर होने के कयास लगाने शुरू कर दिए हैं। आम बातचीत में आजकल यही चर्चा का मुख्य बिन्दु है। सियासत में दिलचस्पी रखने वाले लोग भले ही प्रत्याशियों के बीच जीत-हार की गुणा-गणित बैठा रहे हों, लेकिन यहां का सीधा-सादा किन्तु समझदार वोटर जानता है कि इस बार यहां ‘‘इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं’ है।

ब्राह्मणों को यहां सियासत में दांव पेंच का माहिर माना जाता है तो अन्य जातियों के लोगों का कद भी काफी बड़ा है। यहां चुनावी चर्चा करने पर लोग खुलकर कुछ नहीं बोलते, लेकिन जातिवाद, क्षेत्रवाद, राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक, बेरोजगारी, मंहगाई, किसानों की आय, छुट्टा जानवरों का आतंक, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, सुरक्षा, बुलडोजर, गर्मी में शिमला का एहसास, माफिया, राजनीति के अपराधीकरण और मुख्यमंत्री के ठोंकने वाले बोल, सपने में भगवान कृष्ण का मथुरा से चुनाव लड़ने के लिए संदेश देना जैसे मसलों का जिक्र जरूर करते हैं। साथ ही साथ एक तीखा व्यंग्य बाण भी प्रत्याशियों की ओर फेंकते हैं, ‘जो पांच साल नहीं दिखते, वे अब गांव -गांव पहुंच रहे हैं। फिलहाल इस चुनाव में केन्द्र और राज्य सरकार के साथ ही पूर्ववर्ती मायावती और अखिलेश यादव सरकार का कामकाज भी चर्चा का हिस्सा बन रहा है। लेकिन कसौटी तो सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज की हो रही है।

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