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मोटापे के चलते करोड़ों की मोटी रकम भी हो रही है स्वाहा, ये रिपोर्ट उड़ा देगी आपके होश

नई दिल्ली )। ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के 2022 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 50 फीसदी लोग अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि करते हैं। महिलाओं में स्थिति चिंताजनक है, लगभग 60 फीसदी महिलाएं अनुशंसित गतिविधि स्तरों को पूरा करने में विफल रहती हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि यह जीवनशैली, खराब डायट संबंधी आदतों के साथ, मोटापे में वृद्धि को बढ़ावा दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में बढ़ते मोटापे की समस्या पर चिंता जताई थी। यह सिर्फ सेहत का मसला नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा है। एक नई स्टडी के अनुसार, भारत में मोटापे का आर्थिक बोझ 2030 तक बढ़कर 6.7 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष हो जाएगा। यह लगभग 4,700 रुपये प्रति व्यक्ति होगा, जो जीडीपी का 1.57 फीसदी है।

ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, 2019 में मोटापे का आर्थिक प्रभाव 2.4 लाख करोड़ रुपये था। यह लगभग 1,800 रुपये प्रति व्यक्ति और जीडीपी का 1.02 फीसदी था। 2060 तक यह आंकड़ा बढ़कर 69.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो प्रति व्यक्ति 44,200 रुपये और जीडीपी का 2.5 फीसदी होगा। यह स्टडी बताती है कि मोटापा सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा है। बढ़ता मोटापा, स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ाएगा और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इस समस्या को मन की बात में उठाकर इसकी गंभीरता को रेखांकित किया है।

ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के आंकड़े बताते हैं कि मोटापे का आर्थिक बोझ लगातार बढ़ रहा है। 2019 में जहां यह 2.4 लाख करोड़ रुपये था, वहीं 2030 तक यह 6.7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। यह दर्शाता है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है। 2060 तक यह आंकड़ा 69.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी ने दुनिया भर के देशों के लिए मोटापे की दर को प्रभावी ढंग से कम करने और उसकी निगरानी करने के लिए नीतिगत उपायों की एक चेकलिस्ट विकसित की है। हालांकि भारत की चेकलिस्ट कई सकारात्मक पहल को दर्शाती है। हालांकि, अभी भी बच्चों में बढ़ते मोटापे से निपटने के लिए कोई ठोस राष्ट्रीय रणनीति नहीं है। भारत में एक राष्ट्रीय पोषण नीति है। इसका लक्ष्य है कि सभी बच्चों, किशोरियों और महिलाओं, खासकर कमजोर वर्ग के लोगों को, पर्याप्त पोषण मिले।

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