प्रयागराज । महाकुम्भ में मौनी अमावस्या पर विभिन्न स्थानों पर हुई भगदड़ की घटना को लेकर सरकार की न्यायिक जांच को विधि विरुद्ध बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है।
जनहित याचिका में मांग की गई है कि हाईकोर्ट की निगरानी वाली उच्च स्तरीय कमेटी इसकी जांच करे। याचिका में श्रद्धालुओं के आवागमन के लिए गंगा पर बनाए गए पांटून पुलों के निर्माण पर भी सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि साल की लकड़ी की आपूर्ति और आपूर्ति के आदेशों की भी जांच की जाए।
अधिवक्ता अरुण मिश्र ने बताया कि जनहित याचिका दाखिल हो गई है। इसी सप्ताह सुनवाई की संभावना है। अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 2025 में प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन किया गया है। इसके लिए 7537 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया गया है। सरकार ने इस आयोजन के लिए बिना किसी मुआवजे के 4000 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की और महाकुम्भ 2025 की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अस्थायी रूप से 30 पांटून पुलों का निर्माण किया। लेकिन 27 जनवरी को केवल पुल संख्या 13, 14 और 15 ही संचालित थे। 28 जनवरी को केवल पुल संख्या 3 को संचालित रखा गया था। 29 जनवरी को केवल पुल संख्या 14, 15, 17, 18, 19, 22 चल रहे थे। अन्य पांटून पुलों को बंद रखा गया था। अगर इन पांटून पुलों का उपयोग नहीं किया जा रहा था तो इनका निर्माण क्यों किया गया?
28-29 जनवरी की रात्रि लगभग डेढ़ बजे संगम तट पर भगदड़ मची। लेकिन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महाकुम्भ ने ऐसी किसी घटना से इनकार किया। विशेष कार्याधिकारी ने भगदड़ की घटना को स्वीकार किया, लेकिन दूसरी ओर उन्होंने पुष्टि की कि कोई गंभीर बात नहीं है। 29 जनवरी की सुबह आठ बजे मुख्यमंत्री ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट किया कि सभी घाटों पर स्नान शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुआ। साथ ही श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि वे किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें। जब भगदड़ की घटना से इनकार करना असंभव हो गया तो घटना के 17 घंटे बाद डीआईजी ने 30 लोगों की मृत्यु और 60 लोगों के घायल होने की बात स्वीकार की।
कहा गया है कि घोषित मृत्यु की संख्या गंभीर संदेहास्पद है, क्योंकि मृतक (रवि प्रकाश पांडेय की दादी) के प्रमाण पत्र-ज्ञापन के नीचे संख्या 54 लिखा है। जब याची ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य कार्यालय में पूछताछ की तो उन्हें अनौपचारिक रूप से बताया गया कि यह मृतक संख्या है। याचिका में कहा गया है कि घटना के बाद सरकार ने जांच आयोग अधिनियम 1952 के प्रावधानों की अनदेखी करते हुए न्यायिक आयोग गठित कर दिया जो विधि विरुद्ध है। राज्य सरकार अपने आप कोई जांच आयोग नियुक्त नहीं कर सकती है। इस मामले में विधानसभा सक्षम है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि सरकार के पास श्रद्धालुओं की संख्या की गणना करने के लिए कोई वैज्ञानिक तंत्र नहीं है लेकिन केवल ऑडिट के दृष्टिकोण से अपने बजट को सही ठहराने के इरादे से संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर संख्या जारी किया जा रहा है। भगदड़ की घटना के बाद पर्याप्त समय बीत गया है लेकिन मृतकों की सूची अब तक जारी नहीं की गई है।
-भगदड़ वाले दिन सभी पांटून पुल क्यों नहीं थे चालू
याचिका में कहा गया है कि यह गंभीर प्रश्न कि जिस दिन भगदड़ की घटना हुई, उस दिन सभी पांटून पुल चालू क्यों नहीं थे। इसमें कुछ गड़बड़ है। साल की लकड़ी के स्लीपर और साल की लकड़ी के किनारों की खराब गुणवत्ता से संबंधित है। न्यायालय के ध्यान में यह लाना आवश्यक है कि प्रारंभ में 39500 नग साल स्लीपर और 5300 नग साल एजिंग की आपूर्ति का ऑर्डर 204500 प्रति घन मीटर की दर से राज्य के स्वामित्व वाले अरुणाचल प्रदेश वन निगम को 24 फरवरी 2024 को दिया गया था। लेकिन उस ऑर्डर को सात मार्च 2024 के आदेश द्वारा रद्द कर दिया गया था। आखिरकार आपूर्ति ऑर्डर तीन संस्थाओं धोरामनाथ ट्रेडर्स, श्रद्धा टिम्बर स्टोर और वसंत टिम्बर मार्ट के संघ को दिया गया। जिस राशि में साल की लकड़ी की आपूर्ति का दावा किया गया, उसकी दर अरुणाचल प्रदेश वन निगम द्वारा कुम्भ मेला 2019 में दी गई दरों से कम है। जबकि महालेखा परीक्षक की 2019 कुम्भ मेला की लेखापरीक्षा रिपोर्ट में निधि के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगाए गए थे।
मेला प्रशासन ने सेक्टर 21 में हल्दीराम स्नैक्स स्टोर के सामने एक अन्य स्थान पर हुई भगदड़ की घटना से इनकार कर दिया। मौनी अमावस्या के अवसर पर आने वाले श्रद्धालुओं की अपेक्षित संख्या लगभग 10 करोड़ थी लेकिन महाकुम्भ में तैनात कुल सुरक्षाकर्मी लगभग 77,000 थे, जो श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बहुत कम थे। वे वीआईपी स्नान कराने में तत्पर थे। मांग की गई है कि ऐसे में इन सभी स्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट अपनी निगरानी में उच्च स्तरीय जांच कराए।