-पिता के संरक्षण में कई बढ़ा रहे हैं कदम तो कई पिता के निधन के बाद हैं प्रयास में
-पुत्रो को विरासत सौपने को नेता भी बिछा रहे हैं गोटियां
देवरिया। जनपद की राजनीति में कई नेताओं के पुत्र अपने पिता की राजनीतिक विरासत पाने की जद्दोजहद में हैं। कईयों को उनके पिता अपनी विरासत सौंपने की जुगत में हैं तो कई पिता के निधन के बाद अपना स्थान बनाने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ की राजनीतिक पारी पिता के समय ही शुरू हो गयी थी, लेकिन वह अभी पूरी तरह स्थापित नहीं हो पाए हैं। यह स्थिति सभी दलों में है। हालांकि कुछ नेताओं के पुत्र अपने पिता विरासत संभालते हुए राजनीति में स्थापित भी हो गए हैं।
वैसे तो राजनीति में एक के बाद दूसरी पीढ़ी के आने की परम्परा काफी दिनों से चल रही है, लेकिन हाल के वर्षो में इसमें काफी तेजी आयी। इससे कोई भी दल अछूता नहीं है और सभी दलों ने नेता पुत्रों व उनके परिवार के सदस्यों को मौका दिया है। जिले में भी इस समय दर्जन भर से अधिक नेता पुत्र राजनीतिक विरासत के वारिस बनने के लिए प्रयासरत हैं। इसमें कुछ ऐसे हैं, जिनके पिता का निधन हो चुका है और अब उनके नाम के सहारे वारिश बनने की कोशिश चल रही है।
आधा दर्जन युवा पिता के निधन के बाद कर रहे हैं कोशिश
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता रहे दुर्गा प्रसाद मिश्र के पुत्र दीपक मिश्र शाका की राजनीतिक पारी पिता के जीवित रहते ही शुरू हो गयी थी तथा वह भागलपुर के ब्लॉक प्रमुख बने थे। पिता के निधन के बाद 2017 में वह बरहज से भाजपा से टिकट के दावेदार थे। इस बार भी उनकी दावेदारी है। पूर्व मंत्री शाकिर अली के पुत्र परवेज आलम श्री अली के संरक्षण में ही जिला पंचायत सदस्य बन गए। अब जबकि शाकिर अली का निधन हो चुका है, परवेज पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र से सपा से टिकट के दावेदार हैं। सपा के संस्थापक जिलाध्यक्ष व एमएलसी रहे रामनगीना यादव के पुत्र विजय प्रताप यादव ने भी पिता के रहते समय से राजनीति शुरू कर दी थी तथा ब्लॉक प्रमुख भी बने। पिता के निधन के बाद उनकी भी कोशिश जारी है। 2017 में सपा से टिकट न मिलने पर वह निर्दल चुनाव लड़े थे, इस चुनाव में भी वह पार्टी से टिकट के दावेदार हैं। एक समय बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता रहे रामप्रसाद जायसवाल के पुत्र मुरली मनोहर जायसवाल 2017 के विधानसभा चुनाव में बरहज से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े तथा दूसरे स्थान पर रहे। अब वह भाजपा में हैं तथा बरहज से दावेदार हैं।
देवरिया से भाजपा के विधायक रहे जनमेजय सिंह का बीच में ही निधन हो गया था। उनके विधायक रहते समय ही पुत्र अजय प्रताप सिंह पिंटू उनका काम देखते थे। पिता के निधन के बाद वह उपचुनाव में पार्टी से टिकट चाहते थे। भाजपा के टिकट न देने पर वह बागी होकर निर्दल चुनाव लड़े। अब वह सपा में शामिल हो गए हैं। वह भी इस चुनाव में एक बार फिर अपने पिता की विरासत को पाने की कोशिश में हैं। बड़े समाजवादी नेता रहे हरिकेवल प्रसाद के तीसरे नंबर के पुत्र जयनाथ कुशवाहा गुड्डन का नाम भी इसमें शामिल है। हालांकि उनके बड़े भाई रविन्द्र कुशवाहा लगातार दूसरी बार सलेमपुर से सांसद हैं, लेकिन गुड्डन भी राजनीति में स्थापित होने के प्रयास में हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी के रूप में भाटपाररानी से चुनाव भी लड़े थे तथा दूसरे स्थान पर थे। इस बार भी वह टिकट के प्रयास में हैं। गौरीबाजार से विधायक रहे प्रमोद सिंह भाजपा में आने के बाद लगातार टिकट के लिए प्रयास करते रहे। इस बार भी वह प्रयास कर रहे थे, लेकिन नवम्बर माह में उनका असामयिक निधन हो गया। अब उनके पुत्र सत्यप्रकाश सिंह उर्फ पंकज अपने पिता की राजनीतिक विरासत को पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष व विधायक रहे अनिरूद्ध राय के पुत्र वरूण राय भी कांग्रेस में पिता की विरासत को पाने का प्रयास कर रहे हैं। वह दो चुनावों से पार्टी से टिकट मांग रहे हैं। इस बार भी दावेदार हैं।
कईयों के पिता कर रहें है पुत्रों को वारिस बनाने की जुगत
जिले में कई नेता अपने पुत्रों को राजनीतिक विरासत का वारिस बनाने की जुगत में हैं। इसमें कुछ अपने पुत्रों को पंचायतों में स्थापित भी कर चुके हैं। सपा नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी के पुत्र अभिषेक त्रिपाठी राजन अपने पिता के संरक्षण में जहां दो बार तरकुलवा के प्रमुख रह चुके हैं, वहीं प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सूर्यप्रताप शाही के पुत्र सुब्रत शाही लगातार दूसरी बार पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र के ब्लॉक प्रमुख हैं। प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री जयप्रकाश निषाद भी अपने पुत्र विश्वविजय निषाद को राजनीतिक कमान सौंपने के प्रयास में हैं। विश्वविजय की पत्नी इस समय गौरीबाजार की ब्लॉक प्रमुख हैं। देवरिया सदर से दो बार सांसद रहे श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के पुत्र शशांक मणि त्रिपाठी भी पिता के नक्शेकदम पर चलने के प्रयास में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में वह सदर सीट से दावेदार भी थे। 2024 में उनके फिर टिकट का दावेदार होने की संभावना है। रामपुर कारखाना के विधायक कमलेश शुक्ल के खराब स्वास्थ्य के चलते उनके पुत्र डां संजीव शुक्ल सब काम देख रहे हैं। डॉ शुक्ल रामपुर से पिता की जगह टिकट के दावेदार हैं। बरहज विधायक सुरेश तिवारी भी अपने पुत्र संजय तिवारी को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। संजय देवरिया विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहें हैं। इसी तरह सपा एमएलसी रामसुंदर दास निषाद के पुत्र अरविन्द साहनी, सलेमपुर के पूर्व विधायक सुरेश यादव के पुत्र ओ पी यादव भी विभिन्न जगहों से दावेदार हैं।
कुछ सांसद, विधायक बन सभाल रहे हैं विरासत
जिले में कई ऐसे पुत्र हैं जो अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर ठीक से काबिज हो गए हैं। भाटपाररानी के विधायक डॉ आशुतोष उपाध्याय 2012 में अपने पिता कामेश्वर उपाध्याय के निधन के पार्टी में सक्रिय हो गए। 2013 में हुए उपचुनाव में वह विधायक चुने गए। 2017 में वह दोबारा चुनाव जीते। इस बार भी उनके सपा से मैदान में रहने की संभावना है। सलेमपुर के सांसद रविन्द्र कुशवाहा अपने पिता के राजनीति में थे। उनके निधन के बाद सपा से बात बिगड़ने पर वह भाजपा में शामिल हो गए तथा वह लगातार दूसरी बार सांसद हैं तथा अपने छोटे भाई जयनाथ कुशवाहा को राजनीति में स्थापित करने के प्रयास में हैं। पूर्व विधायक गजाला लारी अपने पति मुराद लारी की राजनीतिक विरासत को संभाल रही हैं। समाजवादी चिंतक मोहन सिंह के निधन के बाद सपा ने उनकी पुत्री कनकलता सिंह को बचे हुए कार्यकाल के लिए राज्यसभा में भेजा था। इस बार वह बरहज विधानसभा क्षेत्र से सपा से टिकट मांग रही है।