नैमिषारण्य-सीतापुर। पृथ्वी के उद्धार के लिए भगीरथ गंगा को लाए थे। आज दधीचि व आदि गंगा की तपोस्थली को एक भगीरथ का इंतजार है जो आकर इस धरती का उद्धार कर सके। हम बात कर रहे है विधानसभा मिश्रिख की। इस धरती को विकास पुरूष के रूप में एक भगीरथ की जरूरत है। इस तपोस्थली पर एक से बढ़कर एक धुरंधर आए और चले गए मगर विकास के नाम पर इस को सिर्फ धोखा ही मिला। विकास के नाम पर चाहे वह चौरासी कोसीय परिक्रमा मार्ग हो या फिर आदि गंगा गोमती की सफाई अथवा वैभव शिक्षा को तरसता क्षे़त्र हो। सभी ने वादे कर जनता से वोट तो खूब लिए पर विकास के नाम पर उन्हें ठेंगा ही दिखाया गया।
मैली हो गई आदि गंगा
जिस गोमती को आदि गंगा के नाम से जाना जाता है वह आज अपना आस्तित्व खोती जा रही है। आसपास के जिलों के लोगों के मरने पर आज भी उनके उद्धार के लिए उन्हें यहीं पर लाकर जलाया जाता है और उसी में प्रवाहित कर दिया जाता है। आज भी पितृपक्ष में पूवर्जो की आत्मा के तर्पण के लिए इसी आदि गंगा पर लोग आते है। धीरे-धीरे यह आदि गंगा मैली होती चली गई। आज यह नाले के रूप में तो परिवर्तित हो ही गई है साथ ही हालात यह हैं कि इसका जल आचमन करने के लायक नहीं बचा है। आज इस गंगा को किसी भगीरथ का इंतजार है।
दधीचि मंदिर व कुंड पर कब्जा
जिन दधीचि ने राक्षसों के वध के लिए इसी धरती पर अपने शरीर को गाय द्वारा चटवा दिया था और उनकी हडिडयों से बने वज्र से राक्षसों का वध किया गया था आज उनके मंदिर व कुंड पर माफियाओं का कब्जा है। उनके कुंड में जल आचमन के लायक तक नही है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृह मंत्री सरीखी हस्तियां यहां आई, इसी जल से पूजा-अर्चना की और हालत देख उद्धार का वादा किया पर पूरा कभी नहीं हुआ।
चौरासी परिक्रमा की अनदेखी
विश्व प्रसिद्ध होली चौरासी कोसी परिक्रमा मेले मार्ग का तो हाल ही न पूछिए। अतिजर्जर मार्ग पर जब श्रद्धालु नंगे पांव चलते हैं तो उनके पैरों से खून तक निकल आता है। प्रकाश और पानी तक की व्यवस्था इस मार्ग पर पूर्ण रूप से नहीं है। इतना ही नहीं आपको बता दें कि इस परिक्रमा मेले में देश से ही नहीं बल्कि विदेशों तक के श्रद्धालु आते है। यह परिक्रमा आज से नहीं युगों से चला आ रहा है। जनप्रतिनिधियों के तो महल बन गए पर इस मार्ग का उद्धार करने के लिए कोई भगीरथ नहीं आया।
शिक्षा का अभाव
आज गुरू वेदव्यास की इस धरती पर शिक्षा का अकाल है। पढ़ाई के लिए आज भी क्षेत्र के लोगांें को बाहर के ही रास्ते पर चलना पड़ता है। अनेकों जनप्रतिनिधियों ने चुनावी मंच से वादे किए कि जीते तो डिग्री कालेज बनकर रहेगा पर यह भी चुनावी घोषणा ही बनकर रह गया। उच्च शिक्षा के लिए अभी भी सभी को बाहर ही जाना पड़ता है।
मिश्रिख विधानसभा की मतदाता स्थित
इस बार विधानसभा मिश्रिख में कुल मतदाता 358755 है जिसमें पुरूष मतदाता 194414 है जबकि महिलाएं 164318 मतदाता है वहीं अन्य में 23 मतदाता शामिल है।
मिश्रिख विधानसभा में कब-कब कौन रहा विधायक
सीतापुर जिले की मिश्रिख विधानसभा सीट राजनीतिक लिहाज से पहली बार 1952 में वजूद में आई, तब से लेकर 2007 यह सीट अनारक्षित रही है। वहीं 2012 में इस सीट को सुरक्षित कर दिया गया। 1952 के पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस के गंगाधर शर्मा और दल्ला राम ने बाजी मारी। वहीं 1957 में निर्दल प्रत्याशी मूलचंद और अवधेश कुमार यहां से विधायक बने थे। उस वक्त इस विधानसभा में दो निर्वाचन क्षेत्र हुआ करते थे। 1962 के चुनाव में एसओसी से अवधेश कुमार फिर विधायक बने। वहीं 1967 में आर. बहादुर ने जीत दर्ज की। 1969 में अवधेश कुमार एसएसपी के टिकट पर चुनाव जीते। 1974 से रामरतन सिंह 1985 तक विधायक रहे। 1989 में निर्दल प्रत्याशी ओम प्रकाश गुप्ता जीते। 1991 में कांग्रेस के रामरतन सिंह जीते। 1993 में सपा के ओमप्रकाश गुप्ता विधायक बने। इसके बाद 1996 और 2002 में सपा के टिकट पर ओमप्रकाश गुप्ता लगातार तीसरी बार विधायक बने। 2007 में सपा से अनूप कुमार विधायक बने। 2012 में सपा से रामपाल राजबंशी जीते। 2017 में रामकृष्ण भागर्व ने मनीष कुमार रावत को 20672 वोटों से हराया।