महाकुम्भ नगर, । मकर संक्रांति को पहले अमृत स्नान के साथ महाकुंभ का आगाज हो गया है। अक्सर ये माना जाता है कि धार्मिक आयोजन, यात्राओं, मेलों और पर्वों में उम्रदराज लोग शामिल होते हैं। इस बार महाकुम्भ में सनातन के प्रति युवाओं का उत्साह देखते ही बन रहा है। मेला क्षेत्र के हर कोने में आपको युवाओं की अच्छी खासा तादाद देखने को मिल जाएगी। इस बार महाकुम्भ में देश के काेन-काेने से युवा सनातन धर्म की भव्यता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का विराट रूप देखने के लिए उत्सुक दिखे। गौरतलब है कि 13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ मेला पूरे 45 दिन 26 फरवरी तक चलेगा। इसमें 40 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश के सीधी जिले से महाकुंभ आए बीएससी प्रथम वर्ष के छात्र सुमिल द्विवेदी के कहते हैं- ‘महाकुंभ में आकर जो मैंने देखा, उससे मैं हैरान तो हूं ही, वहीं मुझे अपनी संस्कृति पर गौरव भी महसूस हो रहा है। मैंने सनातन की विशालता और भव्यता का जो रूप कुंभ में देखा है, उसे ताउम्र मैं भुला नहीं सकता।’
अयोध्या से महाकुंभ आए अभिषेक पाठक अवध विश्वविद्यालय में बीए के छात्र हैं। अभिषेक कहते हैं- ‘अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद से पूरे देश में एक अलग तरीके का माहौल बना है। इससे हिंदू समाज में गर्व की अनुभूति का भाव है। विशेषकर युवाओं में बड़ा उत्साह है।’
महाकुंभ मेले को देखने और साधु संन्यासियों को निकट से देखने की चाहत में मुंम्बई से आये एमबीए के छात्र रोहित जोशी के अनुसार ‘मैं पहली बार कुंभ मेले में आया हूं। यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है। जिन साधु संतों, नागा बाबाओं के बारे में अब तक सुना था, उन्हें पास से देखकर एक अलग ही भाव मन में जागा है।’ रोहित कहते हैं- ‘सचमुच, सनातन का स्वरूप विराट, विस्मयकारी और विविधता से भरा हुआ है जिसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता।’
महाकुंभ आने की प्रेरणा उन्हें कहां से प्राप्त हुई, इसके प्रश्न के उत्तर में रोहित ने कहा, केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से सनातन के प्रति लोगों का नजरिया बदला है। युवा दोबारा अपनी जड़ों से, सनतान से जुड़ना चाहते हैं।’ रोहित के साथ उनके तीन दोस्त भी महाकुंभ में सनातन के विराट स्वरूप को समझने और जानने की मंशा से आये हैं।
उडीसा के बालासोर जिले से 7 युवाओं की टोली महाकुंभ में आई है। माथे पर ऊर्ध्वपुण्ड्र (वैष्णव संप्रदाय का तिलक), कुर्ता और धोती पहने युवाओं की ये टोली सबके आकर्षण का केंद्र बनी। इस टोली के सदस्य निखिल जेना बैचलर आफ हिन्दी एजुकेशन के छात्र हैं, के अनुसार- ‘निश्चित तौर पर सनातन अब जाग चुका है। हिन्दू समाज में नयी चेतना मोदी सरकार बनने के बाद से आई है।’
इसी समूह के प्राईवेट कंपनी में कार्यरत बलराम कहते हैं- ‘सनातन का अर्थ है प्राचीन। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि हमें अपनी संस्कृति पर गर्व की बजाय शर्म महसूस होने लगा। लगता है अब वातावरण बदल रहा है। युवा अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं।’ इन्हीं के साथ आए प्रताप सेनापति कहते हैं- भगवान श्रीकृष्ण ने जैसे विराट रूप के दर्शन कराये थे, वैसे ही महाकुंभ मेला सनातन के विराट स्वरूप के दर्शन कराता है। मैंने यहां आकर जो अनुभव किया उसको मैं बयान नहीं कर सकता।’ इस टोली के सौम्य रंजन, गौतम बेहरा और अन्य सदस्य सनातन संस्कृति के विराट स्वरूप से अभिभूत दिखे।
हरियाणा की बुनकर नगरी पानीपत हरियाणा से महाकुंम्भ में आये छात्र विजय शर्मा और दीक्षांत गर्ग भी सनातन की दिव्यता, भव्यता और विविधता को देखकर अचम्भित और अभिभूत हैं। विजय शर्मा कहते हैं- ‘यहां आकर सनातनी होने पर गर्व महसूस हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि हम श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ हैं।’ वहीं दीक्षांत गर्ग कहते हैं- ‘सनातन धर्म और संस्कृति इतनी विशाल है, मैंने नहीं सोचा था। यहां आकर एक नयी दुनिया मैंने देखी है।’
पश्चिम बंगाल अलीपुरद्वार से नौ युवाओं का समूह महाकुंभ में सनातन के प्रति बढ़ती ललक से खिंचकर आया है। इस समूह के सदस्य मनोरंजन महतो जो पेशे से अध्यापक हैं, के अनुसार- ‘सनातन के प्रति युवाओं ही नहीं बच्चों में भी आकर्षण बढ़ा है। अब युवा सनातनी पहचान दिखाने में परहेज नहीं करते। अब उन्हें सनातनी होने पर गर्व लगता है।’
इस समूह के युवा प्रभास सरकार पंचायती विभाग में कार्यरत हैं। वो कहते हैं- ‘मोदी सरकार बनने के बाद से पूरे हिंदू समाज की खासकर युवाओं की सोच बदली है। अब हमें माथे पर तिलक लगाने, हाथ में कलावा बांधने, धोती और कुर्ता पहनकर सार्वजनिक स्थानों पर घूमने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। अब हमें सनातनी होने पर गर्व महसूस होता है।’ इन्हीं के साथ आये प्रणब सेन कहते हैं- ‘लंबे समय से एक षडयंत्र के तहत हिंदुओं को दबाया गया, जातियों में बांटा गया। अब सनातन पुनः जाग चुका है, जिसे कोई भी षडयंत्रकारी शक्तियां रोक नहीं पाएंगी।’
हरिद्वार से आये चिन्मय कॉलेज के छात्र सुमित कहते हैं- ‘अब सनातनी समाज जाग चुका है। युवा अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं, उन्हेंं जनेऊ पहनने, तिलक लगाने और कलावा बांधने में अब शर्म नहीं गर्व महसूस होता है।’