लखनऊ । यदि उप्र में कांग्रेस के लिए इस साल का लेखा-जोखा देखें तो खट्टा-मिठा रहा। 23 अगस्त 2023 को कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी की जगह दबंग नेता के रूप में पहचान बनाने वाले अजय राय को अध्यक्ष बना दिया। इसके साथ ही उप्र में लोकसभा चुनाव की तैयारियां धमाकेदार अंदाज में शुरू करने की रणनीति पर कांग्रेस आगे बढ़ी लेकिन सपा के साथ गठबंधन ने साल की शुरुआत में कांग्रेस को बहुत उलझाये रखा।
प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपने बयानों से मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। इसी बीच इंडी गठबंधन का जन्म हो चुका था। सपा के साथ गठबंधन में अजय राय झुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह 40 प्रतिशत सीटें कांग्रेस के खाते में चाहते थे। इसको लेकर गठबंधन नहीं हो पा रहा था। कांग्रेस अपनी उप्र में खिसक चुकी जमीन से भी वाकिफ थी और अंत में आते-आते प्रदेश अध्यक्ष की इच्छा के विपरित प्रियंका गांधी ने हस्तक्षेप किया और 21 फरवरी को दोनों के बीच गठबंधन हो गया।
21 फरवरी 2024 को एक होटल में जब दोनों दलों के नेताओं ने एक साथ गठबंधन में सीट बंटवारे की घोषणा की तो अजय राय का चेहरा मुरझाया सा था। इस गठबंधन में 17 सीटें कांग्रेस के पास थीं। इस सीट बंटवारे से कांग्रेस नेता बहुत खुश नहीं थे लेकिन रिजल्ट ने कांग्रेस को खुश कर दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने उप्र में छह सीटें जीत ली।
हार के बावजूद कांग्रेस जीत जैसा जश्न के माहौल में डूबी रही। कांग्रेस पदाधिकारियों के हौसले भी सातवें आसमान पर थे लेकिन हरियाणा के चुनाव ने उप्र कांग्रेस को भी प्रभावित किया और कांग्रेस नेता पुन: धाराशायी होते दिखे। इसी बीच उप्र उप चुनाव भी सिर पर था। कांग्रेस ने सभी उप चुनाव वाले क्षेत्रों में पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिये थे। कांग्रेस काे पुन: गठबंधन दल ने ही मात दे दी और कांग्रेस बैकफुट पर आ गयी।
कांग्रेस उप चुनाव में अपने मन मुताबिक चार सीटों की मांग कर रही थी। सपा एक-एक कर अपने उम्मीदवार उतारती गयी और कांग्रेस से पूछा तक नहीं। अंत में कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़कर उसे देने की घोषणा की। इस पर कांग्रेस तिलमिला गयी और किसी भी सीट पर अपना उम्मीदवार न उतारकर सपा को समर्थन करने की घोषणा कर दी।
उप चुनाव में सपा को समर्थन देने के बावजूद कांग्रेस अपने साथी सपा के हारने का इंतजार करती रही। सपा मात खा गयी। प्रदेश के सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी ने उपचुनाव की नाै सीटाें में से सात पर जीत दर्ज की। सपा के खाते में महज दो ही सीटें आईं। अब कांग्रेस को उम्मीद है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वह दबाव में नहीं, अपना प्रभाव दिखाते हुए सपा से अधिकतम अपने मन मुताबिक गठबंधन कर सकेगी। वरिष्ठ पत्रकार वी.के. उपाध्याय कहते हैं कि कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी गड़बड़ यह है कि केन्द्रीय नेतृत्व प्रदेश नेतृत्व काे अपने भराेसे में नहीं लेता। दोनों के बीच तालमेल का अभाव दिखता। कांग्रेस नेतृत्व काे यह समझना हाेगा कि उसका सामना इस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी, गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री याेगी आदित्यनाथ जैसे कद्दावर नेताओं से है। इस पूरे साल कांग्रेस में ऐसी रणनीति का अभाव देखने को मिला है।