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मॉब लिंचिंग पर ‎शिकंजा: जा‎ति या धर्म के नाम पर हत्या करने वालों को ‎मिलेगी मौत की सजा, जानें क्या चल रही तैयारी

नई दिल्ली(ईएमएस)। आए ‎दिन होने वाली मॉब ‎लिचिंग की घटनाओं ने पूरे देश को ‎चिंता में डाल ‎दिया है। इससे भय और आक्रोश का माहौल भी देखा जा रहा था। ले‎किन अब ‎जिस तरह की खबर आ रही है वो बड़ी राहत देने वाली है। कहा जा रहा है ‎कि मॉब ‎लिचिंग में होने वाली सजा में बदलाव ‎किया जा रहा है। अब दोषी को फांसी या उम्रकैद की सजा हो सकती है। संभव है कि मॉब लिंचिंग के मामले को हत्या के समान कर दिया जाए। क्रिमिनल जस्टिस बिल की समीक्षा करने वाली संसदीय समिति इस संबंध में सिफारिश कर सकती है।

समिति की तरफ से जाति या समुदाय के आधार पर भीड़ की तरफ से पीट-पीट कर हत्या के लिए वैकल्पिक सजा में बदलाव पर विचार किया गया है। इस मामले में सजा को हत्या के बराबर करने की बात कही गई है। दूसरे शब्दों में, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी भी आधार पर पांच या अधिक लोगों के समूह के जरिए हत्या अन्य आधार पर समूह के प्रत्येक सदस्य के लिए मौत या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

भारतीय न्याय संहिता पर गृह मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट में इस आशय की सिफारिश की गई है। कुछ लोगों ने प्रतिवाद दिया कि सात साल की वैकल्पिक सजा से अदालतों को अपराध में उनकी भागीदारी की डिग्री के अनुसार अभियुक्तों के लिए सज़ा तय करने में विवेक पर छोड़ देना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि समिति डोमेन एक्सपर्ट की राय के साथ चली गई है। इसमें इसमें सात साल के सजा की सिफारिश वाले क्लॉज 101(2) को हटाने का सुझाव दिया गया है। साथ ही केंद्र सरकार के वरिष्ठ कानून अधिकारियों की राय लेने की बात कही गई है।

भारतीय न्याय संहिता में जेंडर न्यूट्रल की बात कही गई है। भारतीय न्याय संहिता विधेयक (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य विधेयक पर तीन अलग-अलग मसौदा रिपोर्ट कुछ दिन पहले स्थायी समिति के सदस्यों को वितरित की गईं। यह शुक्रवार को विचार और अपनाने के लिए निर्धारित हैं। इससे शीतकालीन सत्र में संसद में विचार और पारित करने के लिए विधेयकों को पेश करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

समिति ने तीन प्रस्तावित कानूनों के लिए हिंदी नामों के उपयोग पर द्रमुक जैसे दलों की तरफ से उठाई गई आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। समिति ने कहा कि विधेयकों का पाठ अंग्रेजी में था। इस प्रकार यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों के अनुरूप था। पैनल ने कई प्रिटिंग और ग्रामर संबंधी गलतियों और बीएनएस और बीएनएसएस के प्रावधानों के बीच अलाइनमेंट की कमी को इंगित किया है। साथ ही प्रावधान के इरादे की गलत व्याख्या या कमजोर पड़ने की किसी भी गुंजाइश से बचने के लिए उपयुक्त सुधार की सिफारिश की है।

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