महाकुम्भ नगर । तलवार का नाम सुनते ही राजा-महाराजाओं के जमाने की याद आती हैं। क्योंकि उस समय तलवार का महत्व बहुत अधिक था। चाहे वो युद्ध के मैदान में हो या फिर राजतिलक के वक्त कमर पर बांधने पर हों। वही लाठी का नाम सुनते ही किसान की याद आती हैं क्योंकि खेत की रक्षा करने के लिए यह किसानों का प्रमुख हथियार होता हैं। ऐसा इसलिए बता रहें हैं क्योंकि महाकुम्भ मेले में परम्परागत हथियारो की दुकानें सजी हैं। हां वो अलग बात है कि ये हथियार सजावटी और बिना धार के हैं।
राजस्थान से आये महेन्द्र सिंह सिकलीगर ने बताया कि, ’इन सजावटी प्रयोग शादी, पूजा, सजावट, रामलीला और नाटक मंडली द्वारा कि⁸या जाता है। घर की दीवारों पर सजाने के लिये भी लोग राजा महाराजों के जमाने की तलवार, ढाल, शील्ड, कटार, कृपाण ले जाते हैं। इस समय अशोका मूवी वाली तलवार भी लोग सजाने के लिये खूब ले जाते हैं।’ उन्होंने बताया कि तलवार-ढाल सेट की कीमत 3500 रुपये, शील्ड (रियासतों के चिह्न) 2500 से 4000 हजार, कटार 200 से 450 रुपये, अशोका मूवी वाली तलवार 3000 रुपये और किरपान 600 से लेकर 1200 रुपये की है।’
महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिये सेफ्टी स्टिकमहेन्द्र ने बताया कि, महिला और बुजुर्गों की सेफ्टी के लिये सेफ्टी स्टिक उपलब्ध है। स्टिक सॉलिड स्टील की बनी है। फोल्डिंग वाली स्टिक को आसानी से पर्स या बैग में रखा जा सकता है। इसकी कीमत 600 रुपये है। उन्होंने बताया कि, उनके पास परशुराम जी का फरसा 800 रुपये और बांस की डिजाइन लाठी 200 रुपये में उपलब्ध है।
ऐसे होते थे फौलाद के हथियारमहेन्द्र सिंह सिकलीगर बताते हैं कि, उनके पूर्वज रियासतकाल में राजा महाराजाओं के लिए हथियार बनाने का काम करते थे। रियासतें तो नहीं रहीं, लेकिन हथियार बनाने का उनका पुश्तैनी का काम आज भी बरकरार है। पहले अष्ठधातुओं से निर्मित फौलाद के हथियार बनाए जाते थे। उनका दावा है कि ये तलवारें इतनी धारदार हुआ करती थीं कि लोहे को भी काट दिया करती थी।
नवरात्र व राखी जैसे त्योहारों पर होती थी पूजामहेन्द्र सिंह सिकलीगर बताते हैं कि, रियासतें समाप्त होने के बाद भी नवरात्र व राखी पर सलेखान (जहां राजा महाराजाओं के हथियार रखे जाते थे) से हथियारों को निकाल कर उनकी पूजा की जाती थी। सिकलीगर भी इस अवसर पर हथियारों को राखी बांधने जाया करते थे। राजस्थानों के कई शहरों में हथियारों को ठीक करने का काम करने वाले लोग चार पीढ़ियों से भी ज्यादा समय से यह काम कर रहे हैं। महेन्द्र सिंह बताते हैं कि उनके पूर्वज राजघराने के लिए तीर-कमान, तलवारें, कटारें, ढाल, बल्लम, भाले आदि बनाते थे।
कौन हैं सिकलीगर
सिकलीगर बिरादरी का इतिहास राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में रहने वाले हिन्दू लुहारों के साथ जुड़ा हुआ है। महाराणा प्रताप के समय सिकलीगर हथियार बनाने का काम करते थे। वे राजपूत जाति से जुड़े हुए थे। सिकलीगर की ओर से बनाये गए हथियारों के दम पर ही महाराणा प्रताप ने कई लड़ाइयां लड़ीं और जीतीं। हथियार बनाने के साथ बहादुर होने की वजह से वह लड़ाइयों में भी हिस्सा लेते थे। पर समय के साथ महाराणा प्रताप की शक्तियां कमजोर हो गईं और वे हारने लगे। जिसके बाद उन्हें अपना इलाका छोड़कर जाना पड़ा और जंगलों में रहकर जिंदगी बितानी पड़ी। उस दौरान ही उनसे जुड़े लुहार भी अलग-अलग जंगलों छुपे। बाद में सभी बिछड़ गए।