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बजट में घोटाले का रहता था डर, ब्रिटिश संसद में होती थी चर्चा !

महाकुम्भ नगर । आज जहां कुम्भ मेले मे भारी-भरकम बजट खर्च में अनियमितता को लेकर सरकारें चिंतित रहती हैं, वहीं ब्रिटिश सरकारों को भी इसमें घोटाले का डर सताता रहता था। इसके लिए ब्रिटिश सरकार कुम्भ के खर्च का ऑडिट करवाती थी और रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में पेश किया जाता था, रिपोर्ट की संसद में वृहद चर्चा भी होती थी।

मदन मोहन मालवीय कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक प्रो भूपेश प्रताप सिंह के अनुसार दस्तावेजों से पता चलता है ब्रिटिश सरकार में कुम्भ मेले में किये गए खर्च पर निगाह रखने के लिए अधिकारियों की टीम लगाई जाती थी। यह टीम सीधे उत्तर पश्चिम प्रांत के सचिव को रिपोर्ट करती थी और जांच रिपोर्ट में पिछले मेलों के दौरान हुए खर्च से तुलना भी की जाती थी।

क्षेत्रीय अभिलेखागार में मौजूद मैजिस्ट्रेट एचएम वर्ड द्वारा सत्यापित एक रिपोर्ट में 1893-94 औऱ 1894-95 के कुम्भ के दौरान हुए खर्च का ब्यौरा दिया गया था। कुम्भ में वर्ष 1893-94 में 59,427 रुपये, वर्ष 1894-95 के माघ मेले में 12,077 रुपये और 1895-96 के माघ मेले में 11,613 रुपये खर्च किए गए। जनवरी 1894 के कुम्भ का कुल बजट 59,427 रुपये था। इसे कुल सात मदों में खर्च किया गया था। इसमें पुलिस, पब्लिक वर्क्स, जमीन का भाड़ा आदि शामिल है।

प्रो सिंह के अनुसार ब्रिटिश सरकार बहुत सारे मदों के लिए शुल्क वसूलती थी। खर्चों के ऑडिट की विशेष व्यवस्था थी। दस्तावेज के अनुसार 1893-94 के कुम्भ में एलोकेशन इस्टैब्लिशमेंट के लिए 2211 रुपये, पुलिस विभाग को 6132 रुपये, चिकित्सा विभाग को 1225 रुपये, कंजर्वेंसी मद में 19286 रुपये, पब्लिक वर्क्स के लिए 25,604 रुपये, जमीन का किराया 3898 रुपये और अन्य कार्यों के लिए 1800 रुपये खर्च बताया गया। प्रो भूपेश प्रताप सिंह के अनुसार इसके अलावा इन सारी रिपोर्ट को ब्रिटिश संसद में पेश किया जाता था,जिसकी वृहद चर्चा होती थी और कई तरह के संशोधन भी किये जाते थे।हालांकि ब्रिटिश सरकारों का कुम्भ मेले से कैसे ज्यादा टैक्स वसूला जाय, इसपर ही ध्यान केंद्रित रहता था।

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