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टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से हिमालय क्षेत्र में होती भूकंपीय गतिविधि, नेपाल और तिब्बत में आए भूकंप ने…

नई दिल्ली । तिब्बत में मंगलवार को 7.1 तीव्रता के भूकंप के साथ नौ बार धरती हिली। इस भूकंप में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। एक घंटे में आए इन नौ भूकंपों ने तिब्बत में बड़े पैमाने पर विनाश किया और नेपाल, भारत, भूटान और चीन के कुछ हिस्सों में लोगों को दहशत में डाल दिया। भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक सबसे शक्तिशाली भूकंप का केंद्र नेपाल-तिब्बत सीमा के पास था।
एक रिपोर्ट में कहा कि भूकंप के केंद्र के पास स्थित डिंगरी काउंटी में कई इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं। मीडिया के मुताबिक पिछले पाच सालों में तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े शहर शिगात्से के पास 3.0 या उससे अधिक तीव्रता वाले 29 भूकंप आए। भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से बने हिमालय क्षेत्र में ऐसी भूकंपीय गतिविधि होती रहती हैं।

नेपाल दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक है, जहां भारतीय टेक्टोनिक प्लेट प्रति वर्ष लगभग 5 सेमी की दर से उत्तर की ओर यूरेशियन प्लेट को धकेलती है। यह हलचल न केवल हिमालय के पहाड़ों को ऊपर उठाती है, बल्कि पृथ्वी की सतह के नीचे तनाव भी पैदा करती है। जब तनाव चट्टानों की ताकत से ज्यादा होता है, तो यह भूकंप का रूप ले लेता है। यही कारण है कि नेपाल और उसके आस-पास के हिमालयी क्षेत्र में अक्सर भूकंपीय गतिविधि होती रहती है। नेपाल की जमीन की ऊपरी परत अस्थिर चट्टानों से बनी है, जो भूकंप के प्रभावों को बढ़ाती है, जिससे यह और भी कमज़ोर हो जाती है।

मंगलवार को शुरुआती 7.1 तीव्रता का भूकंप सुबह 6:35 बजे ज़िज़ांग में आया। इसके बाद 4.7 और 4.9 तीव्रता के दो झटके आए। भूकंपों का प्रभाव तिब्बत से कहीं आगे तक फैला। दिल्ली-एनसीआर, पटना और असम तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। नेपाल में भूकंप ने काठमांडू में दहशत फैला दी। जहां लोग घरों के गिरने के डर से बाहर निकल आए।

लगातार भूकंप आने के बावजूद, हिमालयी क्षेत्र अक्सर आपदा की तैयारियों से जूझता रहता है। मुख्य चुनौतियों में खराब तरीके से लागू किए गए बिल्डिंग कोड, पूर्व चेतावनी प्रणाली की कमी और भूकंप सुरक्षा के बारे में अपर्याप्त सार्वजनिक जागरूकता शामिल है।

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